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________________ म. वी. ॥७७॥ नाएं निर्मल हैं मोक्षलक्ष्मीकी माता हैं अनंतगुणोंकी खानि हैं संसारको छुड़ानेवालीं हैं । | इनको जो मुनीश्वर प्रतिदिन विचारते हैं उनको स्वर्ग मोक्षादिकी संपदा मिलना क्या कठिन हैं? कुछ भी नहीं । जो महावीर प्रभु पुण्यके उदयसे मनुष्य व देवोंकी अनेक तरहकी संपदाओंको भोगकर तीन जगत्का गुरु तीर्थकर होकर कुमार अवस्थामें ही कमको नाश करनेवाले मोक्षके देनेवाले संसार शरीर भोगों में परम वैराग्यको प्राप्त हुआ ऐसे श्री महावीर भगवानको मैं भी दीक्षाकी प्राप्तिके लिये स्तुति व नमस्कार करता हूं ॥ इस प्रकार श्री सकलकीर्ति देवविरचित महावीर पुराणमें भगवान् महावीरको भावनाओंके चितवनका कहनेवाला ग्यारवां अधिकार पूर्ण हुआ ॥ ११ ॥ Recen पु. भा. अ. ११. 110011
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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