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________________ कन्जक 464 म. वी. तके समान ऊंचे हैं-ये ढाई द्वीपमें हैं और जैनमंदिरोंसे शोभित हैं । एकसौ सत्तर बड़े ! पु. भ / बड़े देश और नगरी हैं मोक्षके देनेवाली पंद्रह कर्मभूमियां हैं । पंचेंद्रियोंके सब भोगोंको | देनेवाली तीस भोगभूमियें हैं । महा नदियां तालाब कुंड वगैरः की संख्या अन्य । ॥७५॥ हा शास्त्रोंसे जान लेना चाहिये । श्री आदि छह देवियें छह हृदोंपर रहती हैं। आठवें नंदीश्वर ३/ द्वीपमें अंजनगिरी आदिके ऊपर सब देवोंसे नमस्कार किये गये वाचन जैनमंदिर हा हैं उनको मैं भी हमेशा नमस्कार करता हूं। चंद्रमा मूर्य ग्रह तारे नक्षत्र ये असंख्याते ज्योतिपी देव मध्यलोकमें हैं। इनके सव विमानोंके मध्यमें सुवर्ण रत्नमयी अकृत्रिम जिन मंदिर हैं उनको पूजासहित मैं नम स्कार करता हूं । इस मध्य लोकके ऊपर सातराजू प्रमाण ऊर्ध्व लोकमें सौधर्म आदि । सोलह कल्पस्वर्ग हैं उनके ऊपर नौ ग्रैवेयक नवं अनुदिश पांच अनुत्तर-ये कल्पातीत स्वर्ग हैं । इनके विमानोंके त्रेसठ पटल (खन ) हैं । इनके विमानोंकी संख्या चौरासी लाख सत्तावन हजार तेवीस है । ये स्वर्गविमान सव इंद्रियसुखोंको देनेवाले हैं। ___ जो जीव पहले जन्ममें बुद्धिमान, तप व रत्नत्रयसे भूपित, महान् धर्मके करने वाले, अर्हतदेवके व निग्रंथ गुरुके भक्त, जितेंद्री, श्रेष्ठ आचरणवाले हैं ऐसे जीव ही देव- ७५ १ गतिको प्राप्त हुए स्वर्गमें जन्म लेते हैं और वहाँपर अनेक तरहके महान इंद्रिय सुखोंको।।
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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