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________________ - कर्मोंके आगमनके बड़े दरवाजेको ज्ञानादिसे नहीं रोक सकते उन पापियोंको कठिन तप करनेपर भी मोक्षसुख नहीं मिल सकता। जिन्होंने ध्यान शास्त्राध्ययन और संयमादिसे अपने कर्मोंका आना रोक दिया है। उनका मनोवांछित मोक्षरूपी कार्य सिद्ध हो चुका, शरीरको दंड देनेसे क्या भी लाभ है। जबतक योगोंसे चंचल आत्माके कर्मोंका आगमन है तबतक मोक्ष नहीं होसकती VA परंतु उसके संबंधसे संसारकी परिपाटी ही बढ़ती जाती है । ऐसा समझकर पहा हे योगियों तुम बड़े यत्न ( तजवीज ) से पहले सव अशुभ आस्रवोंको रोक रत्न त्रयादिके शुभध्यानसे अपने आत्माके स्वरूपको पाकर अपने मोक्ष होनेके लिये सव ।। || कर्मोंका नाशक ऐसे निर्विकल्प शुद्ध ध्यानसे कर्मास्रवको एकदम हटादो।। संवर भावना-जहां मुनीवर योग, व्रत, गुप्ति आदिसे कर्मास्रवके द्वारोंको ? रोकते हैं वही रोकना मोक्षका देनेवाला संवर है । कर्मास्रव रोकनेके इतने कारणोंको || मुनीश्वर प्रयत्नसे सेवन करें। वे इसतरह हैं-तेरह प्रकारका चारित्र, दश तरहका धर्म, वारह भावना, बाईस परीषहोंका जीतना, निर्मल सामायिकादि पांच तरहका चारित्र, धर्म शुलरूप शुभ ध्यान और उत्तम ज्ञानाभ्यास । ये ही कर्मास्रवोंके रोकनेके उत्तम K! कारण हैं । जिन मुनीश्वरों के प्रतिदिन कर्मोंका संवर तथा निर्जरा होती है उनके उत्तम लन्डन्न्लन्छन्
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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