SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मृत्यु आदिसे कोई वचानेवाला नहीं है । जिस प्राणीको यमराज ले जाता है उसे इंद्रहसहित देव, चक्रवर्ती विद्याधर क्षणभर भी नहीं बचा. सकते । देखो जब काल मनुष्योंके । सामने आजाता है तव सब मणिमंत्रादिक और सव औषधियां व्यर्थ हो जाती हैं। शबुद्धिमानोंने जगत्में शरण जिन ( अरहत ) भगवान् सिद्ध, साधु और केवलीकर उपMallदेशा हुआ भव्योंकी रक्षा करनेवाला साथ रहनेवाला धर्म-ये पदार्थ हैं । तप दान जिन-118 पूजा जाप रत्नत्रय आदि ये सब अनिष्ट और पापोंके नाशक होनेसे बुद्धिमानोंको शरण : आला हैं । जो बुद्धिमान् संसारसे डर कर इन अहंत आदिकी शरणको प्राप्त होते हैं वे शीघ्र ही : ही उनके गुणोंको पाकर उनके समान परमात्मा हो जाते हैं। जो मूर्ख चंडी क्षेत्रपाल आदि. मिथ्याती देवोंकी शरण लेते हैं वे अज्ञानी रोग | सादुखोंसे घिरे हुए नरकरूपी समुद्रमें गिरते हैं । ऐसा जानकर बुद्धिमानोंको पांच परशामिष्ठीकी तथा तप धर्मादिकी शरण लेनी चाहिये जो कि अपने सब दुःखोंके नाश करने-|| वाली है । और दूसरी शरण बुद्धिमानोंको रत्नत्रयादिके द्वारा मोक्षकी लेनी चाहिये। मोक्ष अनंतगुणोंसे भरी हुई है और अनंतसुखका समुद्र है । संसारानुप्रक्षा-यह संसार अनादि अनंत है उसमेंसे अभव्य जीवोंको तो अनंत है और कहीं भव्य जीवोंकी अपेक्षा सांत है । इस संसारमें अज्ञानी जीवोंको Sil CGMrsoजन्जन
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy