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________________ म. वी. , रूप, कभी दूसरे क्षणमें बहुत रूप, कभी अति सूक्ष्म शरीर और कभी बहुत बड़ा शरीर पु. भा.. करता हुआ । क्षणभरमें समीप, क्षणभरमें दूर क्षणभरमें आकाशमें, क्षणभरमें पृथ्वीपर, ॥६३॥ हूँ क्षणभरमें दो हाथोंसे क्षणभरमें बहुत हाथोंसे नृत्य करता वह इंद्र विक्रिया ऋद्धिसे अपनी सामर्थ्य प्रगट करता हुआ इंद्रजालके समान नाटक दिखाता हुआ। फिर अप्छरायें भी है। १ अंगोंको चलाती हुई भाएं मटकाती हुई हर्षयुक्त नाचने लगीं। कितनी तो बड़ी लयके साथ है और कोई तांडव नृत्यके साथ तथा कोई विचित्र हाव भाव वगैरःके साथ वे अप्छरायें नां? चती हुईं । कोई ऐरावत हाथी के ऊपर इंद्रकी भुजाओंमेंसे निकलती प्रवेशकरती हुई कल्प-12 वृक्षकी शाखापर लगी हुई कल्प वेलिके समान शोभायमान होने लगी। कोई अप्सराएं। , इंद्रके हाथकी उंगलिओंपर अपने शुभ हाथ रखती हुई लीला सहित नृत्य करने लगीं। ६ कोई इंद्रकी हस्तांगुलिके ऊपर नाभि रखकर उस अंगुलीको लाठीके समान भ्रमातीं । • हुई । इंद्रकी हर एक भुजापर चढके नाचती हुई वे देवांगनायें मनुष्योंकी आखोंको 8 मोहित करती हुईं। वे अप्सरायें कभी आकाशमें उछलकर नृत्य करती हुई क्षणभर तो नहीं दिखाई। 1. मालूम पड़ती थी फिर क्षणभरमें लोगोंको दीख पड़ती थीं। इस प्रकार वह इंद्र अपनी ॥३॥ । भुजाओंको इधर उधर चलाता हुआ लोकमें महान् इंद्र जालियामालूम होने लगा। उस )
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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