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________________ अपेक्षा शिशु ऐसे प्रभुको वैठाता हुआ। बंधुओंके साथ हर्षयुक्त मुखवाले वे सिद्धार्थ महाराज प्रीतिसे आखें फैलाकर अद्भुत कांतिवाले उस पुत्रको देखते हुए। मायानिद्रामें सोई हुई रानीको उस इंद्राणीने जगाया उस समय वह जिनमाता भी हर्षित होके अपने पुत्रको सब आभूषणोंसे सजा हुआ तेजका समूह ही हो ऐसा देशिखती हुई। जगत्पतिके माता पिता इंद्राणी सहित इंद्रको देखते हुए मनोरथ सिद्ध हो जानसे संतुष्ट होते हुए। उसके बाद सब देवोंने जगत्पूज्य उन मातापिताओंको अनेकतर-5 सहके रत्नोंके आभूषणोंसे और दिव्य वस्त्रोंसे पूजा । फिर प्रीतियुक्त वह सौधर्म इंद्र देवोंके । हासाथ प्रशंसा (स्तुति) करता हुआ कि तुम दोनों इस जगतमें धन्य हो । महान पुण्यवान हो, सबमें मुख्य हो । लोकमें तुम दोनों ही गुरु ही क्योंकि तीन जगतके पिताके माता पिता हो। तीन जगतके पतिको पैदा करनेसे तीन जगतसे मान्य हौ और सब संसारका ? उपकार करनेवाले तीर्थंकर पुत्रको पैदा करनेसे आप भी सबके उपकारी और कल्याकणके भागी हौ । चैत्यालयके समान इस घरको आज हम मानते हैं और हमारे गुरुके । संबंधसे आप दोनों पूज्य तथा मान्य हो । इसप्रकार मातापिताओंकी स्तुति करके और श्रीमहावीर प्रभुको सोंपकर वह इंद्र सुमेरुकी उत्तम कथा सुनाता हुआ क्षणभरके लिये
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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