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________________ ब्लकन्सन्छन् म. वी. दिव्य गंध, मोतियों के अक्षत, कल्पवृक्षोंके फूल, अमृतके पिंडरूप नैवेद्य, रत्नोंके दीप, पु. भा. | अष्टांगधूप, कल्पवृक्षके फल, मंत्रसे पवित्र महान अर्घ और पुष्पांजलिकी वर्षासे महान । भक्तिके साथ पूजते हुए । अनिष्टोंके नाश करनेवाली इष्टमार्थना करते हुए वे इंद्र प्रभुका ॥५९॥ / जन्माभिषेक समाप्त करते हुए। फिर हर्षित हुए वे इंद्र अपनी इंद्राणी और देवोंके साथ है। है। तीन प्रदक्षिणा देकर उन जिनेंद्रको मस्तकसे प्रणाम करते हुए। उस समय आकाशसे सुगंधित जलके साथ फूलोंकी वर्षा होती हुई और मंद ? * सुगंध ठंडी पवन देवोंने चलाई । जिस प्रभुके जन्माभिषेकका सिंहासन सुमेरु पर्वत है। और स्नान करानेवाला इंद्र है, मेघके समान दूधके भरे हुए कलश हैं, सव देवियां नाचनेवाली हैं, स्नानके लिये क्षीरसमुद्र है और जिस जगह देव नौकर हैं ऐसे जन्माभिपेककी महिमा कौन बुद्धिमान् वर्णन करसकता है अर्थात कोई नहीं। जलसे स्नान किये गये उस प्रभुके शिर नेत्र मुखादि अंगोंमें लगे हुए जलकोंको इन्द्राणी अति उज्वल कपडेसे पोंछती हुई । फिर वह इन्द्राणी स्वभावसे सुगंधी प्रभुका है | शरीर होनेपर भी भक्तिसे सुगंधी द्रव्योंका लेपन करती हुई। तीन जगत्के तिलक वे है ६ प्रभु थे तौभी केवल भक्तिके प्रेमसे उन प्रभुके मस्तकपर तिलक लगाती हुई । जगत्का है ॥५९॥ १ चूडामणी उस प्रभुके मस्तकमें चूडामणी रत्न केवल भक्तिसे बांधती हुई । सव संसा-18 ACC
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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