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________________ म. वी. इसलिये हे देव हम भी आपको मस्तक नवाते हैं सेवा करते हैं भक्ति - करते हैं। और खुशीसे आपकी आज्ञा पालते हैं अन्य मिथ्याती देवकी कभी नहीं । इस तरह वह ।। देवोंका स्वामी सौधर्म इंद्र हाथीपर चढके जगतके स्वामी उन प्रभुकी स्तुतिकर गोदमें है। ॥५५॥ ६) विठाके सुमेरुपर्वतको जानेके लिये हाथको उठाता हुआ कि सब चलो । उस समय सब हा देव 'हे प्रभो जय हो आनंद हो वृद्धिको पाओ' इस प्रकार ऊंची आवाजसे कहते हुए। है। इसलिये वह ध्वनि सबदिशाओंमें फैलती हुई। अथानंतर इंद्रके साथ २ सव देवता जय जय शब्द करते आकाशमें उछलते हुए। जो देवता खुशीके मारे रोमांचित शरीर वाले होगये हैं। उससमय आकाशमें प्रभुके आगे ही लीला करती हुई अप्सराएं वाजे वजनके साथ अत्यंत खुशीसे नाचती हुई । गंधर्वदेव भी दिव्य कंठसे वीणावाजेके साथ जन्माभिपेक संबंधी सुंदर अनेक गाने गानेलगे। देवोंके दुंदुभी वाजे अनेक प्रकारके अद्भुत मधुर शब्द करते हुए, जिससे कि दिशाएं बधिर (वहरी) होगई, कुछ दूसरा सुनाई नहीं पड़ता था। किन्नरी हर्पित हो अपने किंनरोंके साथ है। जिनदेवके गुणोंके कहनेवाले मधुर गीत गाती हुई। उससमय सव देव असुर अपनी देवि योंके साथ भगवानका दिव्य शरीर देखते हुए निमेप रहित नेत्रोंको सफल समझते हुए। ॥५५|| है। सौधर्म इन्द्रकी गोदमें विराजमान भगवानके माथे ऊपर ऐशान इंद्र चंद्रमाके समान स
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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