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________________ म.वी जिस प्रभुके अवतार लेने पहिले पिताके महलमें छ: और नव अर्थात् गर्भकेश । पहिले छह महीने तथा गर्भके बाद नौ महीने इस तरह पंद्रह महीने रनोंकी वर्षा । * कुबेरदेव करता हुआ ॥२॥ जिसके सुमेरु पर्वतपर जन्माभिषेकके उत्सवमें रूपको देख इंद्र भी तृप्त न होकर हजार नेत्र करता हुआ ॥ ३ ॥ जो वालअवस्थामें ही राज्यविभूतिको पुराने तृणके समान छोड़कर कामरूपी वैरीको नाश कर तपस्यांके लिये १. वनमें जाते हुए । जिस प्रभुको आहार दान देनेके महात्मसे चंदना नामकी राजकन्या तीन लोकमें प्रसिद्ध हुई और उसके घरमें रत्नदृष्टि वगैरः पंच आश्चर्य हुए । जो रुद्रसे ६ किये गये घोर उपसर्गोंको ( कष्टोको ) जीतकर · महावीर' ऐसे अर्थवाले नामको पाता। । हुआ। जो महावलवान् घातिकर्मरूपी योधाओंका नाश कर केवलज्ञानको प्राप्त हुआ ! जिस प्रभुने स्वर्गमोक्षरूपी लक्ष्मीके सुखको देनेवाले धर्मका प्रकाश किया वह अवतक हुँ भी श्रावक और मुनिधर्म इस तरह दो प्रकारसे संसारमें चल रहा है और आगे भी युगोतक स्थिर रहेगा। जिस महावीर स्वामीका 'वीर' ऐसा नाम कर्मों के जीतनेसे । है, धर्मके उपदेश देनेसे सन्मति है उपसर्गोको सहनेसे महावीर ऐसा नाम है। । इत्यादि अनंत गुणों से पूर्ण उस महावीर प्रभुको मैं उन गुणोंकी प्राप्तिकेलिये मनवचन- ॥१॥ कायसे वारंवार नमस्कार करता हूं।
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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