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________________ | और धर्मध्यानके योग्य है । इसलिये हे पुण्यशालिनी तुम जल्दी शय्यासे उठकर पुण्य - कार्य करो और सामयिक ( जाप ) स्तवन आदि से सैकड़ों कल्याणोंकी भोगनेवाली होवो इसप्रकार कानों को अच्छे लगनेवाले मंगलगानसे और तुरई आदि बाजोंके वजनेसे वह महारानी एकदम जाग उठी । फिर स्वप्नोंको देखनेसे उत्पन्न हुए आनंद से प्रसन्न - | चित्त होकर वह महारानी शय्यासे उठकर एकाग्रचित्तसे मोक्ष होनेके लिए स्तवन सामायिक | आदि उत्तम नित्यकर्म करती हुई । जो नित्यक्रिया कल्याणके करनेवाली है व सबको सुख देनेवाली है । उसके बाद वह रानी स्नान शृंगार गहने आदि से सजकर कुछ अपने नोकरोंको साथ ले राजाकी सभा में जाती हुई । वे महाराज आई हुई अपनी प्राणप्यारीको देख प्रेम से मीठे वचन कहकर उसे अपना आधा आसन देते हुए । उसके बाद वह रानी भी सुख से बैठी हुई प्रसन्नमुख होके सुंदर वाणी से अपने पतिको ऐसा निवेदन ( अर्ज ) करती हुई । दे देव ! आज रात के पिछले पहर सुखसे सोई हुई मैंने अचंभा करनेवाले सोलह स्वप्न देखे हैं | अब हे नाथ ! हाथी आदि अग्निपर्यंत महान आश्चर्य करनेवाले इन सोलह स्वर्लोका फल मुझे जुदा २ कहो । ऐसे उस रानीके वचन सुनकर मति आदि तीन ज्ञानके धारी वे सिद्धार्थ महाराज
SR No.010415
Book TitleMahavira Purana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharlal Shastri
PublisherJain Granth Uddharak Karyalaya
Publication Year1917
Total Pages323
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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