SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ L - १ ] ११ मेघदूत १११७ ई० कालिदाम में मेघतम् का गया मक अनुवाद १२. किरातार्जुनीय --- १६१७ ई०, भारवि के 'किरातार्जुनीयम' का गद्यानुवाद | उपर्युक्त उत्तम और लोकप्रिय काव्यों के गद्यानुवाद का उद्देश या तिलिस्मी, जासूमी और ऐयारी ग्रादि उपन्यासों के कुप्रभाव को रोकना और आख्यायिका-रूप मे सुन्दर पठनीय सामग्री देकर हिन्दी पाठकों की पतनोन्मुख रुचि का परिष्कार करना । ये अनुवाद ग्रसंस्कृतज हिन्दी पाठको को कान्निदास भारवि भट्टनारायण आदि महाकवियों की रचना, विचारपरम्परा और वर्णनवैचित्र्य के साथ ही साथ भारत की प्राचीन सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक व्यवस्था में भी परिचित करते हैं । ये मनोरंजक भी हैं और ज्ञानप्रद भी । इनकी ऐतिहासिक एव साहित्यिक विशिष्टता तथा महत्ता का ज्ञान तुलनात्मक समीक्षा द्वारा ही हो सकता है । जिम समय द्विवेदी जी ने 'रघुवंश' का अनुवाद किया था उस समय हिन्दी में उसके चार अनुवाद विद्यमान थे । लाला सीता राम तथा पडित सरयू प्रसाद मिश्र के पद्यबद्ध और राजा लक्ष्मण सिंह एवं पंडित ज्वाला प्रसाद मिश्र के गद्यात्मक | ये अनुवाद भाषा और भाव सभी दृष्टियों में होन थे ।' किरातार्जुनीय का भाषान्तर करते समय द्विवेदी जी ने श्रीनारायण चितले एण्ड कम्पनी के मराठी, बाबू नवीन चन्द्र दास के बंगला, मेहरा हरिलाल नरमिह राम व्यास के गुजराती और श्री गुरुनाथ विद्यानिधि भट्टाचार्य के बंगला१ उदाहरणार्थ कालिदास का मूल श्लोक था- - तौ स्नातकर्बन्धुमताच राजा पुरन्त्रिभिश्च क्रमश: प्रयुक्तम | कन्याकुमारौ कनकासनस्थावार्द्राक्षतारोपणमन्वभूताम् 'घुवंश', ७, २८ । राजा लक्ष्मणमिह ने अनुवाद किया- सोने के आसन पर बैठे हुए इन दूल्हा-दुलहिन ने स्नातकों का और बान्धवां सहित राजा का और पतिपुत्रालियों का बारी बारी से थाले धान बोना देखा । ज्वालाप्रसाद ने अनुवाद किया सोने के सिहासन पर बैठे हुए, वह बर और बधू स्नातकों और कुटुम्बियों सहित राजा का तथा पति और पुत्र वालियों का क्रम क्रम से गीले धान बोना देखते हुए । द्विवेदी जी का अनुवाद - इसके अनन्तर मोने के सिहासन पर बैठे हुए वर और वधू के सिर पर रोचनारंजित र्गले अक्षत ले गए पहले स्नातक गृहस्थ नेताले फिर बन्धुबान्धव सहित रात्र ने फिर पतिपुत्रवती परासिनी स्त्रिया न
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy