SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 69
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मितता, अनशासन और काल का पालन करत न यावश्यक तथा सा पना का उत्तर लौटती डाक स देत और निरथक एर अनावश्या पत्रा के विपय म मौनधारण कर लेत थ उनके हस्तगत सभी पत्रो पर नोट और तारीख सहित हस्ताक्षर है। जिस पत्र का उत्तर नही देना होता था उस पर No Reply लिख दिया करते थे । अनुशासन के इतने भक्त थे कि एक बार जूते का नाप भेजना था तो पत्र का लिफाफा अलग भेजा और नाप का धागा अलग ।' अव्यवस्था और अशुद्धता उन्हें बिलकुल पसन्द नहीं थी। वस्तुत्रो से ठसाठस भरा हुश्रा कमरा भी सदैव साफ सुथरा रहता था। वे अपने कमरे, सामान और पुस्तको श्रादि की सफाई अपने हाथ से करते थे । प्रत्यक बस्तु अपने निश्चित स्थान पर रखी जाती थी। कलम से कुछ लिखने के बाद उसकी स्याही पोछ कर रखते थे। वस्तुयो का तनिक भी हेर फेर उन्हें खल जाता था। एक बार उनकी धर्मपत्नी ने थाली में रखे गए पदार्थों का नियमित क्रम भंग कर दिया तो उन्हे भर्त्सना सुननी पड़ी। रवीन्द्रनाथ की गल्पो का एक संग्रह विश्वम्भरनाथ शर्मा कौशिक को देते हुए कहा था---'इतना ध्यान रखिए गा कि न तो पुस्तक मे कहीं कलम या पेसिल का निशान लगाइयेगा, न स्याही के धब्वे पडने दीजिएगा और न पाठ मोडिएगा द्विवेदी जी की दिनचर्या बंधी हुई थी। झाँसी में वे बहुत सवेरे उठकर संस्कृत-ग्रन्था का अवलोकन करते थे। फिर चाय पीकर ७ मे ८ तक एक महाराष्ट पंडित मे कुछ अन्याके बारे में पूछताछ करते थे। तदनन्तर बॅगला, संस्कृत, गुजराती आदि की पत्रिकाओं का अवलोकन करते और स्वयं भी थोडा बहुत लिखते थे । लगभग १० बजे भोजन करके दफ्तर जाते थे। करीब दो बजे जलपान कर के अँगरेजी अखबार पढ़ते रहते और जो काम अाता जाता था उसे समाप्त करते थे। लगभग चार पाँच बजे घर आते, हाथ मुंह धोते, कपडे बदलते, द्वार पर बैठ जाते और आगत जनो से वार्तालाप करते थे । घंटे डेढ घंटे मनोरंजन करके पुस्तकावलोकन करते और फिर नव दस बजे सोने चले जाते थे। उनके अफसरा ने उनकी पदोन्नति करके उन्हें अन्य स्थानो पर भेजना चाहा परन्तु इस भय से कि दिनचर्या और नियमितता में कही विघ्न न हो जाय, उन्होने बराबर अस्वीकार किया। is correctly spelt as shown below. 16, 6, 25," द्विवेदी जी के पन की रूप रेखा, का० ना० प्र० सभा कार्यालय । १. 'सरस्वती', भाग ४० सं० २, पृ० १४४. ४५ । २. , , , , १४५ । im. १६१ १७१
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy