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________________ अपन गावं की सफाई क लिए एक भगी का लार साया। गान म अस्पताल शक्खा मवशीवाना आदि बनवाए , आमा के कइ बाग भी लगवाए उन्हा ने इस बात का अनुभ किया कि अशिक्षित ग्रामवानियो को शिक्षित करने से ही भारत की उन्नति हो सकती है। ___उन्हाने वाणी की अपेक्षा कर्म-द्वारा ही उपदेश किया। मार्ग में गोबर, कॉटा, कॉचक टुकड़ा आदि पडा देव कर स्वयं उठाकर फेंक प्राते थे। इस आदर्श से प्रभावित होकर दूसरे व्यक्ति भी उनका अनुकरण करने थे रेलवे में नौकरी करने के कारण जनसाधारण द्विवेदी जी को बाबू जी कहा करते थे। मामले-मुकदमे में गय लेने के लिए लोग उनके पाम आते और वे समझा-बुझा कर श्रापम में हो फैसला करा देते थे । गरीब किसानों को माधारण 'सूद पर' विना सूद के या अन्यन्त अनहाय होने पर दान-रूप में भी धन दिया करते थे ! मुन्दर लम्बा डील-डौल, विशाल रोवदार चहा, प्रतिभा की रेखायो से अंकित उन्नत भव्य माल, उठी हुई असाधारण घनी भौहें, तेजभरी अभिभावक आँखें और सिंह की मी अस्तव्यस्त फैली हुई मूछे द्विवदी जो को एक महान् विचारक का ही नहीं. उम दिग्विजयी महाबलाधिकृत का ब्यक्तित्व प्रदान करती थी जो अपनी भयंकर गर्जना से ममस्त भूमंडल को थर्रा देता है। उनकी मुन्वाकृति में हो विदित होता था कि उनमें गम्भीरता है, मनचले छोकरो का छिछोरापन नहीं । व्यक्तिगत जीवन के पदन्यास में या साहित्य की भूमिका में कही भी उन्होने उच्छशलता का परिचय नहीं दिया। उन्होंने प्रत्येक कार्य को अपना कर्तव्य समझ कर गम्भीरतापूर्वक प्रारम्भ किया और अन्त तक मफलता-पूर्वक निबाहा । माहित्यिक वाद-विवादों में किलकिलाकर वाग्बाणवी होने पर भी उन्होने यथा-सम्भव अपने संयम और गमनीरता की रक्षा की । गम्भीर होते हुए भी उनके व्यवहार में नीरमता या शुष्कता नहीं थी। वे स्वभावतः हास्य-विनोद के प्रेमी थे । जब साहित्य-सम्मेलन ने मर्व प्रथम परीक्षाएँ चलाई तब द्विवेदी जी ने भी प्रशमा परीक्षा के लिए आवेदन-पत्र भर कर भेजा। ' उनकी रुचि शृंगारिक कविता की और कम थी। एक बार वे बालकृष्ण शर्मा 'नयोन' । उन्हीं की मंडली में पूछ बैठे -''काहे हो बालकृष्ण, ई तुम्हार सजनी, मखी, सलोनी, गण को आयें । तुम्हार कविता माँ इनका बडा जिकर रहत है । मब लोग हम पड़े और वीन जी मेंप गए। २ . सरस्वती, भाग ४०, सं० २, पृ० १७३ । विवेटी-मीमामा' प. २३४
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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