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________________ की इतिश्री हो जाती थी , "ब्राह्मण' का नृत्य कवल हो पाना धा तथापि ग्राहका स चन्दा माँगते माँगते थककर ही प्रताप नारायण मिश्र को लिखना पड़ा था आठ माम बीते जजमान, अब तो करो दच्छिना दान । जनसाधारण में पत्रपत्रिकाधो के पढ़ने की रुचि नहीं थी। श्रीसम्पन्न जन भी इस ओर में उदासीन थे । सरकार की तलवार भी तनी रहती थी। सम्पादको के लाख प्रयत्न करने पर भी ग्राहकसंख्या न सुधरती थी। कार्तिक प्रसाद खत्री तो लोगों के घर जाकर पत्र पढ़कर सुना तक पाते थे । इतने पर भी उनका पत्र कुछ ही दिन बाद बन्द हो गया। मूल्य अत्यन्त कम और प्रचार का उद्योग अत्यधिक होते हुए भी पत्रों की तीन सौ प्रतियाँ विकना कठिन हो जाता था। अधिकाश पत्रिकाओं के लिए चार पाँच वर्ष तक की जीवनावधि बहुत बड़ी बात थी। १६वीं शती के हिन्दी-पत्रो का श्राकार बहुत मीमित था । 'ब्राह्मा के पहले अंक में केवल १२ पृष्ठ थे। उसकी लेखमूची इस प्रकार थी--- प्रस्तावना प्रेरित पत्र---काशीनाथ ग्वत्र होली-प्रताप नारायण मिश्र स्थानीय समाचार विज्ञापन हिन्दी प्रदीप का प्राकार श्रपक्षाकृत बड़ा था। उसके सितम्बर, १८७८ ई० के द्वितीय वर्ष के प्रथम अंक की विषय सूची निम्नाकित है-- एक बधाई का मलार मुन्द पृष्ट पेम एक्ट के विरोध में हम चुप न रहे पगने और नए अवध के हाकिम पश्मिोत्तर के विद्याविभाग में अन्धाधुन्ध मलान बंगाल और यहाँ के मुशिक्षित मच मत बोला पेट फूलन और अफरने की बीमार्ग हम लोगों के दान का क्रम सभ्यता का एक नमूना , मार्च १८८३
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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