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________________ साहि य, समाचार हास्य, यात्रा जान विज्ञान आदि अनक विपया घर लेख प्रकाशित हार थे सम्पादन क्ला र उस प्रारम्भिक युग म भारत दु की सम्पादकीय टिप्पणिया पार वस्तु योजना की मौलिकता एवं कुशलता सर्वथा श्लाघ्य है । अपनी लोकप्रियता के कारण वह पत्रिका मासिक से पाक्षिक और फिर साप्ताहिक हो गई। बारम में उसमें प्राचीन और नवीन कविताएँ छपती थी परन्तु कालान्तर में उमका रूप राजनैतिक हो गया । १८८० ई० में 'कवि-वचन-सुधा' में 'मर्सिया' नामक पंच छपा । झूठे निन्दको की बान में लाकर सर विलियम मुइर ने उसे अपना अपमान नमझा और पत्रिका की सरकारी सहायता बन्द कर दी। क्रमशः उसका पतन होता गया और १८८५ ई० मे १० चिन्तामणि के हाथो उसकी अन्त्येष्टि क्रिया हुई । १८७२ ई० म 'हिन्दी-दीप्ति-प्रकाश' और 'विहार-बन्धु' प्रकाशित हुए । १८८७३ ई० म भारतेन्दु ने 'हरिश्चन्द्र-मेगज़ीन' निकाली । वह पत्रिका भी मामिक से पाक्षिक और फिर माताहिक हुई । उसमें भाषा-सम्बन्धी आन्दोलन की विशेष चर्चा रहती थी। हिन्दी और अंगरेजी दोनों भाषाओं में लेख छपते थे । अधिकाश कविता ब्रजभाषा की होती थी और नस्कृत-रचनायो को भी स्थान मिलता था । हिन्दी गद्र का परिष्कृत रूप पहले पहल उसी पत्रिका में प्रकट हुअा | नवे अंक ने, १८७४ ई० में, उसने 'हरिश्चन्द्र-चन्द्रिका नाम धारण किया । एजकेशन डाइरेक्टर कैम्पसन ने उनमें प्रकाशित 'कवि-हृदय-सुधाकर शीर्षक उप. देशात्मक और उपयोगी यती-वेश्या-मवाद को अश्लील कहकर सरकारी सहायता बन्द करदी। ठीक समय पर प्रकाशित न होने के कारण उसकी अत्यन्त दुर्दशा हुई। १८८० ई० म 'मोहन-चन्द्रिका' के माथ मिला दी गई । १८८१ ई. में 'विद्यार्थी भी इसी में मम्मिलित हो गया । उसी वर्ष उनके अनुज ने उसका पुनः प्रकाशन प्रारम्भ किया परन्तु शीघ्र ही मोहनलाल पंड्या की कानूनी कार्यवाही के कारण वह ममाप्त हो गई । १८७४ ई० म भारतेन्दु ने नीसरी पत्रिका 'बालबोधिनी निकाली थी। 'हरिश्चन्द्र-चन्द्रिका' के साथ हो उसकी सहायता खल जनन सों मजन दुखी मत होंहि हरि पद मति रहे । उपधर्म छूटै मत्व निज भारत गहै कर दुग्ख कहे । बुध नहिं मन्सर नारि नर सम होइ जग आनन्द लहै । तजि माम कविता सुकवि जन की अमृत बानी सब कहै। , उसके मुग्व पृष्ठ पर ही अंगरेजी में उसकी रूप रेग्वा अंकित की गई.--- "A monthly journal published in connection with the Kaviyachan sudha containing articles on literary, scientific, political and Reli gious subjects antiquities revieri dramas husto y novels soet cal * ection, gossip humous and it
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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