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________________ गहमरी ने अपने नाटक और उप यास' लख म चुलबुला भ पा म नारक म प नास की भिन्नता को लेकर कुछ स्थूल बान बतलाद उप यास क तत्वो की सूक्ष्म विवचना नहा की। बदरी नारायण चौधरी ने रूपक का लक्षण बतलाया-रूप के आरोप को रूपक कहते है जो सामान्यतः चार प्रकार से अनुकरण किया जाता है ।'' जगन्नाथदास विशारद ने नाटक की परिभाषा करते हुए लिखा-'नाटक उमको कहते हैं जिसमें नाट्य हो, 'अवस्थानुकृति नाट्यम्' अवस्था का अनुकरण करने का नाम नाट्य है ।”२ श्यामसुन्दरदाम ने भी यही त्रुटि की है-"किसी भी अवस्था के अनुकरण को नाट्य कहते है ।"3 दन समीक्षको ने धनन्जय और धनिक के कथन का अक्षरशः अनुवाद मात्र कर दिया है। उन्हें चाहिए था कि 'अवस्था' और 'अनुकृति' शब्दों की विशद् व्याख्या करके उनके अर्थ को स्पष्ट करते। दश रूपक में प्रयुक्त 'अवस्था' का अर्थ तुधावस्था, नुष्टावरथा बाल्यावस्था, वृद्धावस्था, सम्पन्नावस्था, विपन्नावस्था आदि न होकर धीर, उदात्त अादि नायको के स्थायी भाव की अवस्था है। इसका कारण संस्कृत नाटककार की दृष्टि की विशिष्टता है । उसका मानव जीवन के धर्म आदि पदार्थो मे में किसी एक को पाने का प्रयास करता है और संघर्षों के पश्चात् उमे प्रतिनायक के विरोध पर विजय तथा अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति होती है। नाट्यकला के प्रभाव मे संस्कृत-नाटक का पाठक या -- स्वर मिलाकर यही कहता हूँ कि सरद् पूनो के समुदित पूरनचन्द की छिटकी जुन्हाई सफल मन भाई के भी मुंह मसि मल, पजनीय अलौकिक पद नख चन्द्रिका की चमक के आगे तेबहीन मलीन श्री कलंकित कर दरसाती, लजाती, सरस सुधा धवली, अलौकिक सुप्रभा फैलाती, अशेष मोह जड़ता प्रगाढ तमसोम सटकाती, मुकाती निज भक्त जन मन वाछित पराभय मुक्ति मुक्ति सुचारु चारो हाथों से मुक्ति लुटाती, सकल कलापालाप कलकलित सुललित सुरीली भीड गमक झनकार सुतार तार मुर ग्राम अभिराम लसित बीन प्रवीन पुस्तकाकलित मखमल से समधिक मुकोमल अतिसुन्दर मुविमल ताल प्रवाल से लाल कर पल्लव वल्लव सुहाती, विविध विद्या विज्ञान सुभ सौरभ सरमाते विकसे फूले सुमनप्रकाश हास वास बसे अनायास सुगवित सित वमन लसन सोहा सुप्रभा विकमाती, मानस बिहारी मुक्ताहारी नीर क्षीर विचार सुचतुर कवि कोविद राज राजहंस हिय मिहासन निवासिनी मन्दहासिनी त्रिलोक प्रकासिनी सरस्वती माता के अति दुलारे प्राणों से प्यारे पुत्री की अनुपम अनोखी अतुल बल बाली परम प्रभावशाली सुजन मनमोहनी नव रम भरी सरस सुखद विचिन वचन रचना का नाम ही साहित्य है । द्वितीय हिन्दी-साहित्य सम्मेलन का कार्य-विवरण, भाग १, पृ० २६, ३०। १. द्वितीय हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन का कार्य-विवरण, भाग १ पृष्ट ४५ । २. द्वितीय हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन का कार्य-विवरण, भाग २, पृष्ठ २३८ ।-- ३ रूपक रास्प पृ०१०
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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