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________________ ३३५. है शती द्विद युगान प्रतिनिवि तर पोडासा हृदयश है उनका प्रत्येक कृति इस शैली में विशिष्ट है। जयशंकरप्रसाद की कहानियो, रायकृष्णदास के गद्यकाव्यों, पूर्णसिंह के भावात्मक निबन्ध आदि में भी स्थान स्थान पर इस शैली का प्रयोग हुआ है 1 इस शैली के लेखकों ने संस्कृत की कोमलकान्त पदावली के प्रति विशेष आग्रह किया है । C । धार्मिक, राजनैतिक आदि आन्दोलनों, उनके वक्ताओं और उपदेशकों ने वक्तृतात्मक शैली को विशेष प्रोत्साहन दिया | हिन्दी के प्रायः सभी पाठकों को सब कुछ सिखाने की आवश्यकता थी । परिस्थितियों ने द्विवेदी युग के साहित्यकारको स्वभावतः उपदेशक और चला बना दिया । फलस्वरूप लेखकों ने वक्तृतात्मक शैली का प्रयोग किया। इस शैली की विशेषता यह है कि लेवक सभा मंच पर खडे होकर भाप करने वाले वक्ता की भाति धारावाहिक और श्रीजपूर्ण भाषा मे अपना वक्तव्य देता हुआ चला जाता है । पाठको का ध्यान विशेष रूप से आकृष्ट करने के लिए वह बीच बीच में संबोधन- शब्दों के प्रयोग, वाक्या और काव्याशों की पुनरावृत्ति, प्रश्नो की योजना, विरोध और विरोधाभास, चमत्कारपूर्ण विशेषण आदि की सहायता भी लेता है । द्विवेदी युग के साहित्यकारो मे श्यामसुन्दरदाम और चतुरसेन शास्त्री इन शैली के श्रेष्ठ लेखक हैं। पद्मम शर्मा सिंह, सत्यदेव आदि की भाषा में भी इसका यथास्थान समावेश हुआ है। इस शैली की रचनाओं की भाषा-रीति लेम्बकों के इच्छानुसार विभिन्न प्रकार की है । उदाहरणार्थ, श्यामसुन्दरदास की भाषा शुद्ध संस्कृत-प्रधान और चतुरनेन शास्त्री की संस्कृत-पदावली यत्र-तत्र उर्दू शब्दों में गुम्फित है । संलापात्मक शैनी का लेखक राठक ने एक घनिष्ठ सम्बन्ध सा स्थापित कर लेता है । वह अपने वक्तव्य को इस घरेलू ढंग से उपस्थित करता है कि मानों पाठक से समालाप कर रहा हो । मक और संतापात्मक शैलियों का मुख्य अन्तर यह है कि पहली मे खोज की प्रधानता रहती है और दूसरी में माधुर्य की । द्विवेदी युग में संलापात्मक शैली का मिद्ध लेखक कोई नहीं हुआ । नाटकों या मलाप रन्तनाओं' की भाषा शैली को मेलापात्मक नहीं कहा जा सकता क्योंकि वहाँ लेखक की प्रवृत्ति और व्यक्तित्व की कोई व्यंजना नही होती । वह तो लेखक- सन्निवेशित पात्रों के कथोपकथन की अनिवार्य प्रणाली है | कहानियो और उपन्यासों के पात्रों के कथोपकथन में लेखकों की संपत्मक प्रवृत्ति अवश्य दिखाई देती है | लाला पार्श्वतीनन्दन के दुम हमारे कौन हो, ३ श्रीमतो बंग महिला के 'चन्द्रदेव से $ कृष्णदास का 'मलाप' आदि । २ सरस्वती १३०४ ई० पृष्ट ११८
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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