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________________ २८.४ क रूप कहां सूक्ति के रूप में श्राश्रन्योक्ति के रूप में तीमर काव्य विवान व रूप में प्रबन्धमुक्तक थे जिनमें प्रबन्ध का कथानक और मुक्तक की स्वच्छन्दता एक साथ थी, उदाहरणार्थ 'लू' (१६२५ ई०) गीता या गीतियां ने काव्यविधान का चौथा रूप प्रस्तुत किया। मौलिकता की दृष्टि से इन गीतों के पात्र प्रकार है । भारतस्तव (श्रीवर पाठक) आदि गीत संस्कृत के 'गीतगोविन्द' ग्रादि के अनुकरण पर लिखे गए। श्रीधर पाठक, रामचरित उपाध्याय, वियोगाहरि श्रादि ने हिन्दी की भक्तिकालीन पद-परम्परा की पद्धति पर गीतो की रचना की, उदाहरणार्थं रामचरित उपाध्याय का 'भव्यभारत' (सरस्वती, भाग २१, संख्या ६) मुभद्रा कुमारी चौहान के 'झामी की रानी' आदि गीत लोकगीतानुकरण के रूप में आए । ' उस युग के शोकगीत, प्रबन्धगीत और पत्रगीत अगरेजी के एलेजी, बैल आदि के बहुत कुछ अनुरूप हैं। मंथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानन्दन पत, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला आदि ने उपयुक्त प्रभावों से युक्त गोत भी लिखे जिनमें भाव, भाषा और छन्द सभी में नवीनता थी, उदाहरणार्थं पंत का 'परिवर्तन' | शैली की दृष्टि में इन गीतों का प्रचार वर्णनात्मक, व्यग्यात्मक, चित्रात्मक या पत्रात्मक था और आकार एकछन्दोमय, मिश्रछन्दोमय या मुक्तछन्दोमय था | द्विवेदी युग के उत्तरार्द्ध में भाषा के मंज जाने पर उच्चकोटि के कलात्मक गीतों की रचना हुई । I ༣ काव्यविधान का पाचवा रूप गद्यकाव्य था । हिन्दी मे पद्य ही अब तक कविता का माध्यम था । गद्यकाव्य के आविर्भाव और विकास के कारण भी द्विवेदी युग का हिन्दी साहित्य के इतिहास में निराला स्थान है । द्विवेदी जी ने स्वय ही 'प्लेगस्तव राज' और 'समाचारपत्री का विराट रूप' दो काव्यात्मक गन्ध लिखे थे । 'तुम हमारे कौन हो ? १२ आदि गद्य रचनाओं में भी पर्याप्त कवित्व था । परन्तु इन प्रारम्भिक प्रयामी में आधुनिक हिन्दीगद्यकाव्य का रूप निम्बर नहीं सका । हिन्दी गद्य का रूप संस्कृत और परिष्कृत न होने के कारण उसमे काव्योचित गंजनाशक्ति या न पाई थी । जयशंकरप्रसाद के 'प्रकृतिसौन्दर्य' और 'प्रलय', ' बालकृष्ण शर्मा नवीन का 'निशीथचिन्ता " राय कृष्णदास के 'समुचित कर' और 'चेतावनी', चतुरसेन शास्त्री के 'कहा जाते हो', 'श्रादर्श ५. यह कविता बुन्देलखंड में प्रचलित 'खूब लड़ी मरदानी घरे झांसी वाली रानी' नामक लोकगीत के आधार पर लिखी गई है ७ 1 २. सरस्वती भाग १, पृष्ठ ११८ ३ इंदु कला १. किरण १ पृष्ट म । ४. माधुरी भाग २ खंड २ संख्या १, पृष्ठ ६० । 1 ५. प्रभा भाग १, खंड २ पृष्ट ३०४ ६ प्रभा वय ३ व १ 19 प्रमा प ३ पृष्ठ ४०१ २४१ २
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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