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________________ [ २४८ ता फुट कर शब्दों का उदाहरण हा निम्न कित अवच्छेद तो उदू ही है "कागजी रुपये से सम्बन्ध रखने वाले महकमे का काम काज चलाने के लिये एक कानून है । उसका नाम है एक्ट २ जो १६१० ईस्वी में पाम हुआ था। उसके पहले भी कानून था। पर १६१० ईस्वी में वह फिर से पाम किया गया, क्योंकि पहले के कानून मे कुछ रहोवदल करना था। इसी कानून की रू में इस महकमे का मारा काम होता है। ....... ....... ..... ..... ................. १६२७ ईश्वी में गवर्नमेंट ने एक और कानून बना कर एक्ट २ में कुछ तरमीम कर दी है। अपने पत्रों में भी कहीं-कहीं फारमी की छारसी उडाने में उन्होंने चमत्कार दिखाया है, यथा 'अदालत प्रालिया में मुकदमाजेर तजबीज या२ कुछ शब्दो के समर्थन में यह कहा जा सकता है कि वे हिन्दी समाज में व्यवहृत होते हैं, परन्तु हिन्दी-जनता मे प्रचलित तद्भव और द्विवेदी जी द्वारा प्रयुक्त तत्सम स्पा का समुचित निरीक्षण इस भ्रान्ति को दूर कर देगा । हिन्दी ने 'कागज', 'कानून', 'जरूरत', 'जवान', 'कबूल' श्रादि को अपनाया है, 'काग़ज', 'कानून', 'जरूरत', 'जवान', या 'कबूल' आदि को नहीं । द्विवेदी जी को चाहिए था कि उद् शब्दो के ग्रहण में गोस्वामी तुलमीदास जी की आदर्श-पद्धति पर अनुगमन करत ३ उनकी हिन्दी की पहली किताब की भाषा राजा शिवप्रसाद और वर्तमान रडियो की हिन्दुस्तानी की अपेक्षा कम उर्दू-ए-मुअल्ला नहीं है। उसके निम्नाकित नामवाचक विवरण में प्रयुक्त 'सूबह 'मदरसो', 'दफन,' 'मुत्राफिक', 'रोज़मर्रः' आदि शब्द किसी मुल्ला या मौलवी को बागी की शोभा निस्सन्देह बढ़ा सकते हैं, परन्तु द्विवेदी जी की नहीं “हिन्दी की पहली किताब १. शैली भावाभिव्यंजन की प्रणाली और अर्थ धर्म है। २. पद्मसिंह शर्मा को पत्र 'सरस्वती', दिसम्बर, १९४० ई० ३. तुलसीदास जी ने भी विदेशी शब्दों को अपनाया है, परन्तु उनकी शुद्धि करकेसस्य कहहुँ लिखि कागद कोरे। -रामचरित मानस रापरी पिमा म सरीकता कहा रही
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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