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________________ विषय अद्भुत आख्यायिका कविता जीवनचरित (स्त्री) जीवनचरित (पुरुष) फुटकर विज्ञान साहित्य व्यंग्यचित्र [ १६६ । मूलक विर‍ कुल रचनाएं १० ८ ၁ ခု ८ ११ १६* १४ ६. अन्य लेखकों की १ ६ १६ ४ ४ द्विवेदी जी की · ६ २ ૪ ८ ७ १३ १३ ५. Ε वर्ष भर की कुल १०६ रचनाओं में ७० रचनाएँ द्विवेदी जी की हैं। अन्य लेखको की देन आख्यायिका, कविता, साहित्य और पुरुषों के जीवनचरित तक ही सीमित है । लेखक की कमी ने द्विवेदी जी को श्रन्य नामों से भी लेख लिखने की प्रेरणा दी । सम्भवतः सम्पादक के नाम की बारम्बार आवृत्ति से बचने के लिए, अपने प्रतिपादित मत का विभिन्न लेखकों के नाम से समर्थन करने, उपाधिविभूषित अन्य प्रान्तीय या अलंकारिक नामां के द्वारा पाठकों पर अधिक प्रभाव डालने और उम लाठी-युग के लडेंत लेखकों की भयंकर मुठभेड़ से बचने के लिए ही उन्होंने कल्पित नामों का प्रयोग किया था । द्विवेदी जी ने कभी 'कमलाकिशोर त्रिपाठी " बनकर 'समाचार पत्रों का विराट रूप ' १. प्रभाग: (क) 'समाचार पत्रो का विराट रूप' द्विवेदी जी के ही 'समाचारपत्र - सम्पादकस्तव' का गद्यानुवाद है । यदि कोई और व्यक्ति इसका लेखक होता तो द्विवेदी जी उसकी भर्त्सना अवश्य करते । (ख) कला भवन गे रक्षित हस्तलेख मे लेखक का नाम नहीं दिया गया है, द्विवेदी जी ने ही पेंसिल से कमलकिशोर त्रिपाठी लिख दिया है। यदि कोई अन्य लेखक होता तो उमी स्याही से अपना नाम अवश्य देता । हस्त लिखत प्रति से प्रतीत होता है कि द्विवेदी जी ने किसी नौसिखिए से अनुवाद कराकर उसका संशोधन किया है I (ग) कमला किशोर त्रिपाठी नामक तत्कालीन किसी लेखक का पता नही चलता । द्विवेदी जी के भानजे कमलकिशोर त्रिपाठी उस समय निरे बालक थे । द्विवेदी जी ने अपने नाम के बदले उन्हीं का नाम उठा कर रख दिया (घ) स वठार लेख को अपने नाम से सम्बद्ध करने से प्रतिद्वन्द्विया की भावना डो A 1
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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