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________________ उपेक्षाकाल म उन्द मनोरंजक बनाने की उतनी ही आवश्यक्ता थी जितना ज्ञानवद्धन बनाने की । इन जीवनचरितों को भी द्विवेदी जी ने 'सरस्वती' पाठको के मनोरंजन का साधन समझा | अनुकरणीय व्यक्तियों के चरितों के चित्रण द्वारा पाठकों की बुद्धि और चरित्र विकास का विचार भी स्वाभाविक और सगत था । कला की दृष्टि से इन निबन्धों की कुछ विशेषताएं प्रवेक्षणीय है । द्विवेदी जी ने उन्ही व्यक्तियों के चरित पर लेखनी चलाई ह जिनमें कुछ लोककल्याण हुप्रा है और जिनके चरित को पढ़कर पाठको का कल्याण हा मक्ता है। लोगों का प्रलोभन और प्रभाव उन्हें योग्य व्यक्तियों का चरित अंकित करने और उन्हें 'सरस्वती' में प्रकाशित करने के लिए बाध्य न कर सका । इसकी विस्तृत समीक्षा 'सरस्वती - सम्पादन' अध्याय में की जायगी। इन नियन्त्रों की दूसरी विशेषता यह है कि ये बहुत ही मंक्षिप्त हैं। इनमें पात्रों के जीवन की उन्हीं बातों का संग्रह किया गया है जो उनके परिचय और चरित्र चित्रण के लिए प्रावश्यक तथा पाठकों की रुचि को परिष्कृत, भावों को उद्दीत एवं बुद्धि को प्रेरित करने में समर्थ प्रतीत हुई है। इनकी सर्वोपरि विशेषता यह है कि लेखक अपने भावन और अभिव्यजन में सर्वत्र ही ईमानदार है । उसे हिन्दी पाठकों के हिताहित का इतना ध्यान है कि अनुचित पक्षपात और मिथ्या को इन निबन्धों में कही अवकाश नहीं मिला है । शैली की दृष्टि में द्विवेदी जी के निवन्धों की दूसरी कोटि भावात्मक है । इन निबन्धा मे लेखक ने मधुमती कविकल्पना या गम्भीर विचारक मस्तिष्क का महारा लिए बिना हो ara fare के प्रति अपने भावों को वाध गति से व्यक्त किया है। इन भावात्मक निबन्धा की प्रमुख विशेषता यह है कि उच्च कोटि के कवित्व और मननीय वस्तु का प्रभाव होत हुए भी इनमें किसी अंश तक काव्य की रमणीयता और विचारों की अभिव्यक्ति एक साथ है | कवित्व या विचारों की सापेक्ष प्रधानता के कारण ही इनके दो प्रकार हैं- कवित्व-प्रवान और विचार प्रधान । मौलिकता की दृष्टि से कवित्व-प्रधान निवन्ध दो प्रकार के है । 'अनुमोदन का अन्त', ' 'सम्पादक की बिदाई' २ यदि मौलिक निवन्ध है जिनमें द्विवेदी जी १ उठाने का विचार छोड भी दिया जाय तो भी इनके अवलोकन से घड़ी दो घड़ी मनोरंजन तो अवश्य ही हो सकता है। शिक्षा, सदुपदेश और सुसंगति से स्त्रियाँ अनेक अभिनन्दनीय गुणों का अर्जन कर सकती है, यह बात भी पाठकों और पाठिकायों के ध्यान में आए विना नहीं रह सकती | १ सरस्वती १६०५ ई प ८ २ भाग २२ वड ५ ,, २७ मध्य प्र प ० १ महावीर प्रसाद द्विवेदी, 'वनिता-विलास' की भूमिका |
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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