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________________ १४६ है। बातों का संग्रहण और अप्रत्यक्ष रूप में ज्ञान का संवर्द्धन ही इसकं प्रमुख उद्दश रह है । लेग्वक को जीवन अथवा जगत् की कुछ बाते मीधी सादी भाषा में कहनी थी, उपलब्ध साधना के द्वारा उन्हें जनता तक पहुँचाना था। इन बातों को ध्यान में रखकर जो वल्लु रची गई वह निबन्ध हो गई। अपनी बहुविधता, व्यापकता और सामयिकता के कारण ही निबन्ध पत्र-पत्रिकाओं में व्यंजना का मामान्य माध्यम बन गया । उसम स्वतन्त्रता का अधिक अवकाश हाने के कारण ही भारतेन्दु-और-द्विवेदी-युग के माहित्यकारी ने निबन्धनेग्वन की ओर अधिक ध्यान दिया । अधिकाश निवन्ध मामयिक विषयो पर निबद्ध होने तथा मामयिक पुस्तकों में प्रकाशित किए जाने के कारण सामयिकता मे ऊपर न उठ सके । भारतेन्दु-और- द्विवेदी-युग के निबन्ध की विशेष महत्वपूर्ण देन है निबन्ध की निश्चित गतिशेली । द्विवेदी जी के निबन्यो को प्रधानतः इसी ऐतिहासिक दृष्टि में परखना होगा। निबन्ध का वर्तमान मानदंड उनके निबन्धी की ईदृक्ता और इयत्ता को नापने के लिए बहुत छाटा गज है । उनके निबन्धों की गुरुता का उचित भावन करने के लिए उनके व्यक्तित्व, उद्देश, युग, उस युग की आवश्यक्तानो, उनकी पूति के साधक उपायो तथा बाधक नत्वा अादि को ठीक ठीक समझने वाली व्यापक बुट्टि और मद्ददय हृदय की अनिवार्य अपेक्षा है। द्विवेदी जी के प्रारम्भिक प्रयासो मे अालोचना और निबन्ध का समन्वय हुश्रा है ! उद्देश की दृष्टि से ये कृतिया अालोचना होते हुए भी ग्राकार की दृष्टि से निबन्ध की ही कोटि में हैं । 'हिन्दी कालिदास की ममालोचना' आदि निबन्ध सामयिक पत्रों में प्रकाशित हो जाने के पश्चात् मंग्रहपुस्तक के रूप में जनता के समक्ष अाए । 'नैपधचरितचर्चा और "मुदर्शन'', 'वामन शिवराम आपटे २, 'नायिका भेद'3, 'कविकर्तव्य'४, महिषशतक की समीक्षा'५ श्रादि निबन्ध निबन्धकार द्विवेदी के प्रारम्भिक काल के ही हैं। इन निबन्धी से यह स्पष्ट सिद्ध है कि निबन्धकार द्विवेदी के निर्माण का प्रधान श्रेय आलोचक द्विवेदी को ही है। 'सरस्वती'-सम्पादक द्विवेदी को सम्पादकीय टिप्पणियाँ ता लिखनी पड़ी ही साथ ही साथ लेग्बको के अभाव की पूर्ति भी अपने निबन्धा द्वारा करनी पड़ी । इसका विस्तृत विवेचन 'सरस्वती'-सम्पादन अध्याय मे किया जायगा। उपयुक्त लेखकों की कमी के कारण पत्रिकाओं १. 'सरस्वती' १६०६ ई०, पृ० ३२१ । २ .. १६०१ पृ. ७ । به س :
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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