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________________ किं सा तरुणी ? नहि नहि वारणी बारणस्य मधुरशीलस्य ॥ अपनी तथा दूसरों की प्रशंसा में महान कवियों और आचार्यों ने भी सूक्तियों की र | हिन्दी मे भी प्रशंसात्मक सूक्तिया लोकप्रचलित हुई, यथा ग्ञ [ 35 ] नोदय तावद्भा मारमाति उदिते नैषधे काव्ये क्व माघः क्व च भारविः ॥ रुचिरस्वरवर्णपदा नवरसरुचिरा जगन्मनोहरति । ग. कवितामञ्जरी यस्य रामभ्रमरभूषिता ॥ आधुनिक हिन्दी - साहित्य में भी सूक्तिपद्धति पर रचनाएं हुई हैं । डाक्टर रसाल वशतक' का प्राक्कथन, 'शेषस्मृतिया' की रामचन्द्र शुक्ल - लिखित भूमिका आदि कृि (धुनिक समालोचना के मांचे में ढली हुई प्रवर्द्धित, संस्कृत, गद्यमय और प्रशंसात् नीलोत्पलदलश्यामां विज्जिकां मामजानता । वथैव इंडिना प्रोतं सर्वशुक्ला सरस्वती ॥ क सूर सूर तुलसी ससी उडुगन कंसवदास | के कवि खद्योत सम जहं तई करहि प्रकास || कविताकर्त्ता तीन हैं तुलसी केमव सूर । कविता खेती इन लुनी कांकर बिनत मंजूर | तुलसी गङ्गदु भए सुकचिन के सरदार | इनके काव्य में मिली भाषा विविध प्रकार || साहित्यकानने ह्यस्मिश्जङ्ग मस्तुलसीतरुः । कवीनामगलर्षो नूनं वासवदत्तया । बाणभट्ट 'हर्षचरित' की भूमिका ! यदि हरिस्मरणे सरसं मनो यदि बिलासकथासु कुतूहलम् । मधुरकोमलकान्तपदावलिं श्रृणु तदा जयदेवसरस्वतीम् ॥ जयदेव, 'गीतगोविन्द की भूमिका ! व भामनाटकचक्रे पिच्छेकै तिरते परीक्षितुम् । स्वप्नवासवदत्तस्य दाहकोभून पावकः || + निमग्नेन क्लेशैर्मननजल धेरन्तरुदर मयोनीनो लोक ललितर भगंगाधरमणिः । हरन्नन्तर्ध्वान्त हृदयमधिरूढो गुणवता - मलंकारान सर्वानपि गलितगर्वान रचचतु ' विज्जिका देवी दितराज नगनाथ चारण-'हर्षचरित' रसगंगाधर, पृ० २३
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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