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________________ । ११८ तनय, जयदेव, विश्वनाय श्रादि के ध्वन्यालोक , काव्यप्रकाश', ना7771 , 'चन्द्रालोर'. 'सहित्यदर्पण' यादि शब्द लोचन के उपयुक्त अर्थ के ही समर्थक हैं 'सम्' और 'या' उपसर्गो के सहित लोचन ही समालोचन है । व्याकरण, दर्शन, इतिहास आदि-विषयक ग्रन्थों की समालोचना भो ममालोचना ही है । ममालोचना की चाहे जो भी परिभाषा की जाय, उमका निम्नाकित लनण सर्वव्यापक है--साहित्यिक समालोचना वह रचना है जो आलोचित साहित्यिक कृति के अर्थ या बिम्ब का भली भाँति ग्रहण करने में पाठक, श्रोता या दर्शक की सहायता करे। इस उदेश की दृष्टि से संस्कृत ही नहीं, हिन्दी-साहित्य में भी छः प्रकार की ग्रालोचनापद्वतियां दिखाई देती हैं ! १. प्राचार्य-पद्धति २. टीका-पद्धति ३. शास्त्रार्थ-पद्धति ४. मुक्ति-पद्धति ५. वडन-पद्धति ६. लोचन-पद्धति द्विवेदी जी की अालोचना भी इन्हो छः वर्गों के अन्तर्गत होतो है। संस्कृत के प्राचार्य अपने लक्ष णग्रन्थों में काव्यादि के लक्षणों का निरूपण करते थे। जिन लक्ष्यग्रन्थों को वे उत्कृष्ट समझते थे उन्हे रस, अलंकार श्रादि के सुन्दर उदाहरणा के रूप में और जिन्हे निकृष्ट समझते थे । उन्हे अधम काव्य या दोपो के उदाहरणों के रूप मे उद्वत करके उनके गुणदोपो की यथोचित समीक्षा करते थे । 'ध्वन्यालोक', 'काव्यप्रकाश', 'साहित्यदर्पण' श्रादि इसी प्रकार के ग्रन्थ है । हिन्दी-प्राचार्यों ने अपने रीतिग्रन्थों में मम्मट आदि का अनुकरण न करके पंडितराज जगन्नाथ अादि का अनुकरण किया-सिद्धान्तनिरूपण में दूसरों की रचनायो के स्थान पर अपनी ही रचनाओं के उदाहरण दिए और दोष-प्रकरण की अवहेलना कर दी। अाधुनिक हिन्दी-साहित्य में भी संस्कृत की आचार्यपद्धति पर अनेक ग्रन्थ लिखे गए --जैसे गुलाब राय का 'नवरस', कन्हैया लाल पोद्दार का 'काव्य १. पंडित रामचन्द्र शुक्ल को संस्कृत-साहित्य में आलोचना के केवल दो ही ढंग दिखाई पढे हैं-आचार्यद्धति और सूक्तिपद्धति । उनका यह मत है कि 'समालोचना का उद्देश हमारे यहां गुणदोप-विवेचन ही समझा जाता रहा है।' हिन्दी साहित्य का इतिहास पृ ६ ० ६३ अक्ल जी का यह चिन्रय निएंय प्रशत सत्य है
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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