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________________ धामक दृष्टि उदार अोर व्यापक तथा उसक हृदय म प डिता क प्रति सहानुभूति हो उनकी सामाजिक भानना चार विशिष्ट रूपा म व्यक्त हुइ कही तो उन्होंने पीडित ओर दयनीय वर्ग के प्रति सहानुभूति दिखलाई,' कही समाजसुधार का स्पष्ट उपदेश दिया, कही धार्मिक कट्टरपंथियो तथा साहित्यिक वंचको आदि का व्यग्यान्मक उपहास किया और कहीं नमाज के पथभ्रष्ट हठधर्मियों की कठोर भत्सना की ।४ भारतेन्दुयुग ने समाज की अधोगति के विविध चित्र अंकित किए थे । यज्ञ, श्राद्ध, जातिपॉति, वर्णाश्रमधर्म, स्त्रीशिक्षा , छुआछूत, अन्धविश्वान, धर्मपरिवर्तन. विधवाविवाह, बालविवाह, गोरक्षा, विदेशगमन, मूर्तिपूजा अादि पर लेखनी चलाई थी। सबको सब कुछ कहने की चाट थी । कवियों की रूढ़िवादिता या सुधारवादिता के कारण उनकी रचनाओं में महानुभूति की अपेक्षा अालोचनामन्यालोचना का ही स्वर अधिक प्रधान था। द्विवेदी जी ने समाज के सभी अगो पर लेखनीचालन नहीं किया, किसी एक विषय पर भी बहुत सी रचनाएँ नही की । कान्यकुञ्ज ब्राह्मणों के धर्माइम्बर, बालविधवानो की दुरवस्था और ठहरौनी की कुप्रथा ने उन्हे विशेष प्रभावित किया । 'कान्यकुब्जलीलामृतम्' में पाखंडी समाज का चित्रण भारतन्दु-युग की सामाजिक कविताओं की आलोचना-पद्धति पर किया गया है। बालविधवाविनाप', 'कान्यकुब्जअवलाविलाप' और 'ठहरौनी' में बालविधवानों और अबलानी के प्रति ममानुभूति की निदर्शना परवर्ती द्विवेदी-युग की सामाजिक कविता की विशेषता है। अाधुनिक हिन्टी-माहित्य में देश और स्वदेशी पर रचित कविताओं में निहित भावनाओं १ उदाहरणार्थ--'भारतदुर्भिक्ष, त्राहि नाथ त्राहि आदि कविताएं द्विवेदीकाव्यमाला', में संकलित । २. यथा--- हे देश 1 सप्रण विदेशज वस्तु छोड़ो, सम्बन्ध सर्व उनसे तुम शीघ्र तोडो। मोडो तुरन्त उनमे मुह आज से ही, कल्याण जान अपना इस बात में ही ।। 'द्विवेदीकाव्यमाला', पृ० ४२३ । ३. यथा-- 'जन्मभूमि', 'ग्रन्थकारलक्षण', कर्तव्यपञ्चदशी आदि द्विवेदीकाव्यमाला में संकलित । क्यों है तुझे पट विदेशज देश भाये ? क्यों है तदर्थ फिरता मुह नित्य बाये ? तूने किया न मन में कुछ भी विचार, विकार भारत तुमे शत कोटि बार
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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