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________________ कार लमठा कामनिया शी ग य सुधा सदृश आदि में अनमान का लालित्य * मानर सुकर + जना के लिए काना म पीकर म प्रयुक्त प्रयाजनवती लक्षणा सुन्दर है । 'मधुर गीत' को 'सुधासदृश' मानकर कवि ने ठीक समय पर उपमा अलंकार का ग्रहण किया था और 'कानो मे पीकर ने उचित समय पर उमका त्याग कर दिया । उसे दूर नक व्यर्थ ही ग्वीचा नहीं । यदि वे नारिया गाली के बदले कवि के प्रति प्रणयनिवेदन के गीत गाती ती बह ग्रात्मसमपंगा कर देता। गानी गाना', 'चुभ जाता' तथा 'और कुछ की ध्वनि न पद के मोन्दर्य को पार मो उत्कृष्ट बना दिया है। उनकी कविता में कहीं अलंकार-विधान के महारे काव्यमोदर्य की सष्टि की गई है, यथा-- अभी मिलेगा ब्रजमंडलान्त का सुभुक्त भाषामय वस्त्र एक ही। शरीरसंगी करके उसे मदा, विराग होगा तुझको अवश्य ही ।। इसीलिए ही भवभूतिभाविते । अभी यहां हे कविते । न श्रा, न आ॥ बता तुही कौन कुलीन कामिनी सदा चहेगी पट एक ही वही ।।' बह ग्वडीवोली का निकाल था। उसके पद्यों में कवित्व नहीं पा रहा था । ब्रजभाषा के समर्थक इस बात को लेकर अालोचना की धूम बाँधे हुए थे। इस भाव की भूमिका में कवि ने उत्प्रेनालंकार की योजना की है। मुन्दर वेपभूपा में सहजप्रवृत्ति रखने वाली कुलीन कामिनी एक ही सुभुक्त वत्र पर जीवननिर्वाह नहीं कर सक्ती ! कामिनी से कविता श्री उपमा परम्पगगत होते हुए भी नवीन विशेषणों के कारण अधिक ननोहर हो गई है। रही मानव-हृदय की मर्मन्पर्शी अभिव्यक्ति ने कवित्व की सृष्टि की है, उदाहरणार्थ हे भगवान ! कहाँ सोये हो ? विनती इतनी सुन लीजै, कामिनियों पर करुणा करकं कमले ? जरा जगा दी। कनवजियों में घोर अविद्या जो कुछ दिन से छाई है, दूर कीजिए उसे दयामय ! दो सौ दफे दुहाई है ।।२ नारी स्वभावत. कोमलता और करुणा की मृति होती है। सजातीय के प्रति सहानुभूति गग्वना भी स्वाभाविक ही है । इसी कारण कामिनियों के कल्याणार्थ भगवान् को जगाने के लिए कवि ने कमला ने प्रार्थना की है । कहीं हास्य का पुट देकर कवि-समय के सहारे रमणीय पंक्तियो की रचना की गई है, यथा१ द्विवेदी पृ. २३४ ०२७
SR No.010414
Book TitleMahavira Prasad Dwivedi aur Unka Yuga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaybhanu Sinh
PublisherLakhnou Vishva Vidyalaya
Publication Year
Total Pages286
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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