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________________ महावीरका सर्वोदयतीर्थ तपश्चरण करना पड़ा-खूब कड़ा योग साधना पड़ा तब कहीं जाकर आपकी शक्तियोंका पूर्ण विकास हुआ। इस दुद्धर तपश्चरणको कुछ घटनाओंको मालूम करके रोंगटे खड़े हो जावे हैं। परन्तु साथ ही आपके असाधारण धैर्य, अटल निश्चय, सुदृढ आत्मविश्वास, अनुपम साहस और लोकोत्तर क्षमाशीलताको देखकर हृदय भक्तिसे भर आता है और स्वयमेव स्तुति करने में प्रवृत्त हो जाता है। अस्तु; मनःपर्ययज्ञानकी प्राप्ति तो आपको दीक्षा लेनेके बाद ही होगई थी परन्तु केवलज्ञान-ज्योतिका उदय बारह वर्षके उग्र तपश्चरणके बाद बैशाख सुदि १० मी को तीसरे पहर के समय उस वक्त हुआ जब कि आप जम्भका ग्रामके निकट ऋजुकूला नदीके किनारे शाल-वृक्षके नीचे एक शिला पर षष्ठोपवाससे युक्त हुए क्षपकवेरिण पर आरूढ थे-मोहनीयादिकर्मप्रकृतियों का मूलोच्छेद करनेके लिये आपने शुक्ल-ध्यान लगा रक्खा था-और चन्द्रमा हस्तोचर नक्षत्रके मध्यमें स्थित था; जैसा कि पूज्यपादाचार्यकी निर्वाणभक्तिके निम्न वाक्योंसे प्रकट है: ग्राम-पुर-खेट-कर्वट-मटम्ब-धोपाकरान् प्रविजहार । उग्रस्तपोविधानद्वादशवर्षाणयमरपूज्यः ॥१०॥ ऋजकूलायास्तीरे शालद्रमसंश्रिते शिलापट्ट । अपराह्ण षष्ठेनास्थितस्य खलु जम्भकाग्रामे ॥११॥ वैशाखसितदशम्यां हस्तोत्तरमध्यमाश्रिते चन्द्रे । क्षपकण्यारूढस्योत्पन्नं केवलज्ञानम् ॥१२॥ इस तरह घोर तपश्चरण तथा ध्यानाग्नि-द्वारा ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय मोहनीय और अन्तराय नामके घातिकर्ममलको दग्ध करके, महावीर भगवान्ने जब अपने श्रात्मामें ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य नामके स्वाभाविक गुणोंका पूरा विकास
SR No.010412
Book TitleMahavira ka Sarvodaya Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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