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________________ महावीरका सर्वोदयतीर्थ तेजःपुञ्ज भगवान्के गर्भ में आते ही सिद्धार्थ राजा तथा अन्य कुटुम्बीजनों की श्रीवृद्धि हुई—- उनका यश, तेज, पराक्रम और वैभव बढ़ा - माताकी प्रतिभा चमक उठी, वह सहजमें ही अनेक गूढ प्रश्नोंका उत्तर देने लगी, और प्रजाजन भी उत्तरोत्तर सुख-शान्तिका अधिक अनुभव करने लगे । इससे जन्मकाल में आपका सार्थक नाम 'वर्द्धमान' रक्खा गया । साथ ही, 'वीर' 'महावीर' और 'सन्मति' जैसे नामोंकी भी उत्तरोत्तर सृष्टि हुई, जो सब यापके उस समय प्रस्फुटित तथा उच्छलित होनेवाले गुरणोंपर ही एक आधार रखते हैं । महावीर के पिता 'रात' वंशके क्षत्रिय थे । 'गत' यह प्राकृत भाषाका शब्द है । संस्कृत में इसका पर्यायरूप होता है 'ज्ञात' । इसीसे 'चारित्रभक्ति' में श्रीपूज्यपादाचार्यने "श्रीमज्ञातकुलेन्दुना " पदके द्वारा महावीर भगवान्‌को 'ज्ञात' वंशका चन्द्रमा लिखा है, और इससे महावीर ' गातपुत्त' अथवा 'ज्ञातपुत्र' भी कहलाते थे, जिसका बौद्धादि प्रन्थों में भी उल्लेख पाया जाता है । इम प्रकार वंशके ऊपर नामोंका उस समय चलन था -- बुद्धदेव भी अपने वंश परमे 'शाक्यपुत्र' कहे जाते थे । महावीरके बाल्यकालको घटनाओंमेंसे दो घटनाएँ खास तौर से उल्लेखयोग्य हैं - एक यह कि, संजय और विजय नामके दो चारण-मुनियोंको तत्वाथ - विपयक कोई भारी सन्देह उत्पन्न हो गया था, जन्म के कुछ दिन बाद ही जब उन्होंने आपको देखा तो आपके दर्शनमात्र से उनका वह सब सन्देह तत्काल दूर हो गया और इसलिए उन्होंने बड़ी भक्ति से आपका नाम 'सन्मति ' रक्खा । दूसरी यह कि एक दिन आप बहुतसे राजकुमारोंके साथ वनमें वृक्षक्रीड़ा कर रहे थे, इतनेमें वहाँ पर एक महाभयंकर और विशालकाय सर्प निकला और उस वृक्षको ही मूलसे लेकर - पर्यन्त बेढ़कर स्थित हो गया जिस पर आप चढ़े हुए थे } स्कघ
SR No.010412
Book TitleMahavira ka Sarvodaya Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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