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________________ सर्वोदय - तीर्थ २५ 'म्लेच्छाचार' माना गया है। इन दोनों बातोंके निर्देशक दो वाक्य इस प्रकार हैं: - वर्णाकृत्यादिभेदानां देहेऽस्मिन्न च दर्शनात् । ब्राह्मण्यादिषु शूद्राद्य गर्भाधानप्रवर्तनात् ॥ नास्ति जाति - कृतो भेदो मनुष्याणां गवाऽश्ववत् । आकृतिग्रहणात्तस्मादन्यथा परिकल्पते ॥ — महापुराणे, गुरणभद्राचार्य: चिह्नानि विजातस्य सन्ति नाङ्गषु कानिचित् । अनार्यमाचरन किञ्चियते नीचगोचरः ॥ -- पद्मचरिते, रविषेणाचार्य: वस्तुतः सब मनुष्योंकी एक ही मनुष्यजाति इस धर्मका अभीष्ट है, जो 'मनुष्यजाति' नामक नामकर्मके उदयसे होती है, और इस दृष्टिसे सब मनुष्य समान हैं - आपस में भाई-भाई हैं- और उन्हें इस धर्म के द्वारा अपने विकासका पूरा अधिकार प्राप्त है। जैसा कि निम्न वाक्योंसे प्रकट है:मनुष्यजातिरेकैव जातिकर्मोदयोद्भवा । वृत्ति भेदा हिताद्भेदाच्चातुर्विध्यमिहाश्नुते ॥ ३८-४५॥ - प्रादिपुराणे, जिनसेनाचार्यः विप्र-क्षत्रिय-विट् शूद्राः प्रोक्ताः क्रियाविशेषतः । जैनधर्मे पराः शक्तास्ते सर्वे बान्धवोपमाः ॥ - धर्मरसिके, सोमसेनोद्धृतः इसके सिवाय, किसीके कुलमें कभी कोई दोष लग गया हो तो उसकी शुद्धि की, और म्लेच्छों एक कुलशुद्धि करके उन्हें अपने में मिलाने तथा मुनिदीक्षा यादिके द्वारा ऊपर उठानेकी
SR No.010412
Book TitleMahavira ka Sarvodaya Tirth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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