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________________ धर्म सस्करण २ संत तुकाराम जव बाजार जाने को निकलते थे तव उनकी सज्जनता का लाभ उठाने के लिए कई लोग अपनी-अपनी तेल की नली तेल लाने के लिए उन्हे सौप देते थे और तुकाराम भी सतोप के साथ उन नलियो की भारी माला को गले मे डालकर सौपा हुआ काम नियमित रूप से पूरा कर देते थे । जन-स्वभाव ही ऐसा होता है । कोई वालक या कोई आदमी किसी की बात सुनता है, यह मालूम होते ही निकम्मे लोगों का समाज उससे अपना काम करवाने के लिए तैयार हो जाता है । कोई नाव या जहाज नियमित रूप से और तेजी से अपने नियत स्थान पर पहुँचता है, ऐसा पता चलने पर लोग उसी मे अपना माल भरने का आग्रह रखते हैं- प्रौर वह भी इस हद तक कि उसकी गति मद पड जाय और अत्यधिक बोझ से वह डूबने लगे । धर्म की भी इसी तरह की सार्वभौम उपयोगी शक्ति को देखकर हर गरजमद आदमी ने अपनी गरज को किसी न किसी रूप में धर्म के गले मे लटकाया है । इस कारण से भी धर्म का तेज वार वार हीन और क्षीण होता आया है । 75 जिम प्रकार कोई चालू दूकान अपनी तरक्की को बनाये रखने और aढाने के लिये पुराना और निक्कमा हो चुका माल बार-बार हटाया करती है और केवल पड़े रहने के कारण विगडे हुए माल को साफ-स्वच्छ करके उजला और चमकीला बना देती है, उसी प्रकार धर्म का भी बार-बार सस्करण और परिष्करण करना चाहिये । परन्तु यह सस्करण ऐसे कुशल और धर्मज्ञ समाज-सेवको द्वारा ही होना चाहिये, जिनमे खरे सोने को परखने और उसे सुरक्षित रखने की शक्ति है । श्राज दुनिया मे बढी हुई अधिकतर प्रचलित नास्तिकता का मुख्य कारण धर्म-सस्करण का प्रभाव ही है । २ किसी भी समाज के वृद्ध अथवा क्षोणवीर्य होने के मुख्य कारण दो है इन्द्रिय-परायण विलामिता और धर्म- जडता । समाज जव विलासी वन जाता है तो उसके पाम की धन-दौलत उसके लिए पर्याप्त नही होती, उसका पुरुषार्थ अपने श्राप घट जाता है गौर 'ऐसा हो तो भी क्या और वैसा हो तो भी क्या ? किसी मे कुछ नही हैं' इस तरह की निष्क्रियता और श्रालमीपन उस पर सवार हो जाता है । उसके बाद नयेनये अनुभव लेने के बजाय वह प्राचीन ग्रनुभवो के बारे मे कृत्रिम तथा दभ
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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