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________________ महावीर का जीवन सदश मूर्तिपूजा नही थी । मन्दिर तो थे ही नही । यज्ञ-सस्था ही उस सस्कृति का बाह्य स्वरूप था । सम्भव है, मूर्तिपूजा और मन्दिर की सस्था इस देश मे बाहर से ही आयी हो । वौद्ध विद्वान् धर्मानन्द कोसबी का कहना था कि 'हमारे यहाँ मूर्तिपूजा शायद अरबस्तान से आयी है।' मेरा खयाल है कि यूनानी और रोमन लोगो का अनुकरण करके हमने अपने यहां मूर्तिपूजा और मन्दिरो का विस्तार किया होगा । मूर्ति और मन्दिर की स्वीकृति शायद श्रमणसस्कृति मे पहले हुयी, बाद मे वैदिक लोगो ने उसे अपना ली होगी । इस वारे मे निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। आगे चलकर जब श्रमण और ब्राह्मण दोनो धाराप्रो मे शाक्त पद्धति का प्रचार हुना, तब मूर्तिपूजा मे अनेक दोष भी आ गये और मन्दिरो द्वारा अनेक बुराइयो का समर्थन होने लगा। सनातनी मन्दिरो मे खान-पान, भोग-नैवेद्य का झझट बहुत है। मन्दिरो मे किसी बड़े राजा के सुखोपभोग और विलास का अनुकरण ही होता है । जैन मन्दिरो मे यह झझट नही है। भोग-नैवेद्य के रूप मे जहाँ खान-पान का व्यवहार आया वहाँ स्पर्शास्पर्श का पाखण्ड आ ही जाता है । जैन मन्दिरो मे नैवेद्य का विधान न होने से दर्शन की इजाजत हर किसी को आसानी से दी जा सकती है। जैन-धर्म विश्व-धर्म है । वह सब को अहिंसा, तप और आत्मोन्नति की ओर बुलाता है। ऐसे मन्दिर मे किसी को भी दर्शन की रुकावट नही होनी चाहिये । हिन्दू धर्म की श्रमण धारा मे उच्च-नीच भाव का और स्पृश्यास्पृश्य का विधान हो नहीं सकता । मन्दिर मे जाकर दर्शन और पूजा करने से अगर कोई धार्मिक या आध्यात्मिक लाभ होता हो, तो हरिजनो को उससे वचित नहीं रखना चाहिये। ___ यहाँ मै जरा अपनी भूमिका भी स्पष्ट कर दूं। जो लोग आजकल मन्दिर मे जाते है, उनकी आध्यात्मिक उन्नति कहाँ तक होती है, इसका हिसाव किसी ने नही लगाया,। ऐसी हालत में हमारी मन्शा यह नहीं कि हरिजन मन्दिर जाने के आदी बने । हम इतना ही चाहते है कि मन्दिर चलाने वाले लोगो की सकुचितता और बहिष्कार-वृत्ति दूर हो । मन्दिर निर्माता, व्यवस्थापक और मन्दिर मे जाने वाले सब को मैं मन्दिर-सस्था के आधार स्तम्भ समझता हूँ। इनके मन मे जो रूढिवादी सनातनी-वृत्ति घर कर गयी है, वह समाज-स्वास्थ्य के लिये खतरनाक है । उसे दूर करना ही मन्दिर-प्रवेश आन्दोलन का प्रधान उद्देश्य है। मन्दिर-सस्था के प्रति हमे
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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