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________________ जैन समाज के साथ मेरा परिचय जनो के सामने खड़े होकर जैन ममाज या जैन धर्म के साथ का अपना परिचय बताना कोई सरल काम नही है। मैं तो अग्रेज मनीपी एडमडवर्क के मत का हूँ कि किसी भी जाति, समाज अथवा राष्ट्र के बारे में सार्वत्रिक सिद्धान्त बनाये ही नही जा सकते। प्रत्येक सस्कृति की विशेपताएं हो सकती हैं, परन्तु समाज मे तो अनेक प्रकार के लोग होते है । अमुक जाति या वर्ग के नव लोग अच्छे और अमुक के बुरे जैमा भेद किया ही नहीं जा सकता। मनुष्य जाति सव जगह एकसी ही है। और, जैन ममाज के माथ मेरा परिचय भी कहां कितना व्यापक है ? मैं तो कुछ मिनो को ही पहचानता हूँ। मैंने पुमाफिरी पूरी की है। लेकिन वह तो नदियो और पर्वतो को, तीथों और मदिरो को, गांवो और उनकी परेशानियो को देखने के लिए की है । समाज की विविध प्रवृत्तियों के साथ मेरा परिचय सीमित ही है। परन्तु, मनुष्य का परिचय कम हो या अधिक, उमके साथ उसे अपना अभिप्राय तो वनाना ही पड़ता है, क्योकि अभिप्राय बनाये विना जीवन मे व्यवहार मम्भव ही नहीं होता। परन्तु ऐसा अभिप्राय शब्दो मे व्यक्त नही किया जा सकता । अपने मन में भी उसका विश्लेपण नही किया जा सकता। अभिप्राय निश्चित हो तो भी वह अव्यक्त ही रह सकता है। अपने अनुभव के आधार पर मैं इतना कह सकता हूँ कि कोई भी ममाज अपने लिए श्रेष्ठ होने का दावा नहीं कर सकता। मैं तो यहां तक कहूंगा कि अन्य जातियो से अधिक अस्मिक होने का दावा भी जैनो को नही करना चाहिए। तफसीलो मे या रीति-रिवाजो मे भले ही भेद हो, लेकिन गुजरात की सभी जातियां समान रूप से अहिंसक है। आप चाहे तो इतना दावा जरूर कर सकते हैं कि जैन धर्म के प्रचार के कारण और आपके सहवास के कारण लोगो मे इतनी अहिंसा पाई है । ऐसे दावे मे तथ्य जरूर है। *ता 27-8-29 को जैन युवक सघ, बम्बई मे दिया हुआ भाषण ।
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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