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________________ अजितवीर्य बाहुबलि 31 मोह आदि देख कर मानव-जाति के प्रति अपार दुख मूर्ति की आँखो और होठो मे समा गया है। इतना होने पर भी निराशा और खीझ का कही आभास तक नहीं मिलता। दुनिया तो ऐसी ही होती है, ऐसी ही है, इसीलिए तो उस के उद्धार का प्रश्न खडा होता है । मनुष्य की पापमय प्रवीणता अधिक बलिष्ठ है अथवा महापुरुपो, बोधिसत्वो, तीर्थकरो और अवतारो की क्षमा तथा करुणा वृत्ति ' इस प्रश्न का उत्तर मनुष्य को सदा एक ही तरीके से जो मिला है, वही उत्तर हमे इस मूर्ति की मुख मुद्रा से मिलता है। __ नीचे लटकते हुए कान, शरीर-रचना के अनुपात की रक्षा नहीं करते परन्तु मूर्ति की प्रतिष्ठा वढाते है । यही क्यो, वे हमे सौन्दर्य दर्शन की दृष्टि भी देते है। इस मूर्ति की आँखें, इसके होठ, इसकी ठोडी, इसकी प्रांखो के ऊपर की भौंह और इसके सम्पूर्ण चेहरे का कारुण्य, सभी कुछ असाधारण रूप से सुन्दर है। आकाश के नक्षत्र जैसे लाखो वर्षों तक चमकते हुए भी सदैव नवीन रहते हैं, उपा वैदिक काल से लेकर आज तक जमे अपने लावण्य और नवीनता की रक्षा करती आई है, उसी तरह एक हजार वर्ष से यहां खडी यह मूर्ति भी वैसी ही नवीन, वैसी ही सुन्दर और वैमी हो द्युतिमान है, धूप-हवा और पानी के कारण पीछे की ओर की पतली-पतली पपडी भले ही खिर गई हो, पर इससे मूर्ति का लावण्य नप्ट नही हो गया है। कहते है कि अमेरिका के किसी फण्ड के ट्रस्टी इस मूर्ति के पत्थर को जीर्ण होने से बचाने के लिए इसके ऊपर किसी प्रकार का मसाला लगाना चाहते थे, लेकिन जैनियो ने ऐसा नही करने दिया। उनका कहना है कि जव हजार वर्ष से यह मूर्ति ज्यो कि त्यो खडी है तो भगवान की कृपा होगी तो दूसरे हजार वर्ष तक भी यह ज्यो की त्यों खडी रहेगी और यदि न रहेगी तो जिस स्थिति मे होगी उसी मे हम इसकी पूजा करेंगे । दूसरी ओर- रक्षा करने वाले लोग कहते है कि इस मूर्ति पर अधिकार भले ही जैनियो का हो परन्तु इस मारे ससार की अपूर्व सम्पत्ति है, शिल्पकला का यह अद्वितीय रत्न है, अप मानव-जाति की अमूल्य विरासत है । हम वार्निश चढा कर इस मूर्ति को खराव नही करना चाहते । मूर्ति तो जैसी है, वैसी ही रहेगी, इसके प्रभाव मे तनिक भी कमी न आयेगी । इस मे जरा-सा भी और परिर्वतन न होगा। इसकी रक्षा करते हुए ही हम इसकी आयु बढाना चाहते है। वैज्ञानिक उपायो द्वारा, जहाँ तक हो सके वहाँ तक हमे इस मूर्ति की रक्षा करनी चाहिये । अन्यथा प्रभु के द्वारा प्रदत्त विज्ञान का हमारे लिए क्या उपयोग है ? एक बार तो विज्ञान का सदुपयोग होने दीजिये।
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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