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________________ अजिनवीर्य बाहुबनि सवमे पुगना है। प्राज भी उपनब्ध गामग्री के अनुसार मराठी भाषा उद्घाटन इमी वाक्य के नाम हुमा । नामुण्डराय का पिता निमी देवी का भक्त होगा । इसीलिए उसने अपने पुत्र का नाम नागुण्डा माता के नाम पर चामुण्डराय रखा होगा। उम नमय के इतिहास में यह भी व्यक्त होना। कि किमी पाक गा पुन भी अस्मिात्मक मार्गी जैन-धर्म या उपासमा हया या। मराठी भाषा के प्रारम्भ में लिगने के लिए इन दोना लिपिया का समान प्रयोग होता होगा। और नव मगठी एव कारः दोनो भापार गगी बहनो की नरह नाय रहती होगी। मीनिग ता में गिनानेगग प्रसार गोटे गए है। चामुण्डगय राजपुग्प था। अपनी भाषा मगठी हाताभी वह प्रजा को दोनो लिपियों का प्रमार करना चाहता था । अपनी मधुर प्रोर भोजी मगठी भाषा का ऐमा द्वि-विध दर्शन कर मैं गद्गद् हो गया । मराठी भाषा का उद्गम यही है, यह गोचकर मराठी मापा पी इस गगोषी मे ग्नान पर मैं पविन हो गया। तदनन्तर मेरा ध्यान दीमक के घरोदो ने निगनने वाले सपों की पोर गया। यदि लोहे की तनवार में पारम मणि का म्पगं हो जाग तो इस गाने को हुई तलवार का प्राकार भले ही तलवार रहे पर उमन किमी की हत्या नहीं हो मकती। यदि उसमे किमी पर प्रहार भी किया जाये तो वह प्रहार करने की अपेक्षा स्वय ही नम जायगी पोरम प्रकार अपना 'मोनापन' प्रकट कर देगी। उमी प्रकार कारुण्य-मूर्ति, अहिंगाधर्मी बाहुवनि के चरणों में स्थान प्राप्त करने के कारण भयकर मर्प भी पूर्ण अहिंसक बन गये है और अपने फन फैना कर मानो दुनियां को अभय दान दे रहे हैं। दप्टि कुछ ऊपर बढी। वहां दोनो ओर दो माधवी-लताएँ वाहवनि के सहारे अपना विकास करती दीख पड़ीं। जैसे धीरोदात नायक में कोमलागी नायिका लिपट जाती है, उसी प्रकार इस वीर तपस्वी में माधवी लता लिपटी हुई है । उम लता ने कहा-"इस तपस्वी की मै क्या मेवा कर ? मेरा काम तो केवल इतना ही है कि इसकी कठोर तपस्या को छिपा कर, इसमें मे प्रकट होने वाली कोमलता और प्रसन्नता को दुनिया के लिए व्यक्त कर दूं। बाहुबलि मे मैं लिपट कर रह गई है- यह ठीक है, लेकिन मैं उसके लिए वन्धन-स्वरूप नही हूँ। इस बन्धन-मुक्त मुक्तात्मा का हृदय कितना कोमल है, यह निर्देश करने के लिए मैं इसके पैरो से हृदय तक चढ पाई हूँ।"
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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