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________________ 25 अजितवी बाहुबल होगा, उस दिन भरत पुत्र बाहुबलि ( जिसकी भुजाम्रो मे बल हो ) जन्म लेगा और आत्म विजय द्वारा विश्व विजय करके विश्व कल्याण की स्थापना करेगा ।" इस सदेश द्वारा प्रेरणा के पख लगा कर हम ऊपर चढने लगे और इसी कारण वे कठिन सीढियाँ भी हमे सरल हो गई । ३. चामु डराय को खोज किसी राजपुरुष की माता धर्मनिष्ठ थी । रजोगुण मे से सतोगुण का उदय कैसे हुआ ? अभिमान के पत्थर मे से आत्मज्ञान की अभिव्यक्ति किस प्रकार हुई ? ऐसी इस कथा को सुन कर उसके हृदय मे श्रद्धा का स्रोत उमड पडा । उसे लगा कि यदि बाहुबलि के दर्शन न हो तो यह जीवन व्यर्थ है । किसी से उसने यह भी सुना कि कही बाहुबलि की एक हजार हाथ ऊँची स्वर्ण मूर्ति है | उसने उस मूर्ति के दर्शन करने का सकल्प किया । पुत्र ने देखा कि यदि माता को जीवित रखना हे तो बाहुवलि की खोज किये बिना छुटकारा नही । राजपुरुष क्षत्रिय था । भारी सेना लेकर चल पडा । पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण चारो दिशाए खोज डालने का उसने निश्चय किया । लाखो मेरे सैनिक है, चारा दिशाओ मे फैला दूँगा । एक हजार हाथ की मूर्ति कहाँ तक छिपी रहेगी । कभी न कभी तो मिलेगी ही । मेरी माता की आँखे कृतार्थ होगी और मैं सुपुत्र कहलाऊ गा । सेना के साथ घूमता हुआ राजपुरुष दक्षिण में आया । वहाँ उससे एक जैन मुनि ने पूछा - " हे शूरवीर इतनी बडी सेना लेकर क्यो निकले हो ? किस प्रजा का सहार करना है ? कितने घरो मे हाहाकार मचाना है ? कितने हृदयो के शाप के भागी बनना है ?” राजपुरुष ने कहा - " इनमे से मुझे कुछ भी नही करना । 'तो मात्र गोमटेश्वर के दर्शन कराने श्राया हूँ | मेरी माता उनके दर्शनो के लिए विकल है ।" साधु ने कहा - " वह मूर्ति है अवश्य, पर इस लोक मे नही । लाख-लाख यक्ष उसकी रक्षा करते है, चर्म-चक्षु से कोई उसके दर्शन नही कर सकता । लेकिन तुझे, बाहुबलि - गोमटेश्वर के दर्शन अवश्य कराऊगा । देखो, इस चन्द्रगिरि पर कितने ही जैन साधु तप करते है । इसके सामने वह विध्यागिरि दिखाई देता है । उसी के शिखर पर बाहुबलि खडे खडे तप कर रहे है । दुनिया के दुखो से दुखी हो कर, करुणामयी आँखो से वे कह रहे है - "कामये दुखतप्ताना, प्राणिना प्रतिनाशनम् ।" यदि इस चन्द्रगिरि के शिखर से तू एक सोने का बाण फेकेगा तो बाहुबलि की
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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