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________________ 14 महावीर का जीवन मदेश मन्दिगे में भी अन्यागतो की सम्मतिय की पुस्तक रखी जाती है। 'देखा हमारा मन्दिर लिग दीजिए आपके दिल पर जो छाप पडी हो और आपको जो पानन्द हुमा हो उमे, "या कहकर जब किनाव आगे रखी जाती है, तव में अममजम में पड़ जाता हूँ। प्रानन्द व्यक्त करने में मुझे मकोच नहीं होता। अगर वैमा होता. तो मैं यह यात्रा सम्मरण नहीं लिखता । परन्तु, पानन्द को भी जमने और पकने में समय लग जाता है। अगर पुजारी वनिता की तरह उतावली करेंगे, तो उसमे मे विकलाग अरुण का ही जन्म होगा। बरे प्रेम में मबगे विदा लेकर हम तेल-वाहन में मवार हुए और ममय पर पटना पहचने के लिए मुख्य रास्ते पर आ पहुँचे। आकाश के मिनाग ने हमे गमलाया कि अब हम पश्चिम को जा रहे है, दोनो तरफ के पुगण-पुरप जैी वृक्ष यात्रा को सफलता का आशीर्वाद दे रहे थे । अव तो गन्त के दोनो तरफ मोटर के प्रकाश में चार-छह क्षणो के लिए प्रकट होने वाले और फिर तिरोहित होने वाले वृक्षा के मिवा देखने की कोई चीज नही थी। एकाध गुग्गोश या लोमती मोटर के प्रकाश से मडककर भागने लगती थी, तो अलमत्ता ध्यान खीचनी थी। परन्तु पावापुरी की अहिंसा-भूमि के जी-गर के दशन करने के बाद और कुछ देखने की इच्छा ही नहीं हो रही थी। पाकाग के नित्य-नूतन तारे भी बडे प्रेम मे कहने लगे, "हम तो हमेशा के लिए है ही। अाज हमारे साथ बाते न करो, तो हर्ज नही है। हम चिरसाक्षी है। यहां हमने अनेक अवतारो को देखा है । कई घटनाएँ हमने अपनी प्राखा के निमेष और उन्मेपो मे नोध कर रखी है। आज हम तुम्हारे ध्यान मै अन्तराय नहीं करेंगे। तुम ध्यान करते जाओ और हम अपने आध्यात्मिक ताल मे तुम्हारा साथ करेंगे।" उपासना के योग्य अगर कोई मार्वभौम देवता है, तो वह जीवन हे । परन्तु जीवन-देवता की उपासना विकट होती है । मनुष्य के लिए अगर कुछ हिततम हैं, तो जीवन को पहचानना ही है। जीवन-देवता बहुरूपिया है । वह देता है और लेता भी है। जन्म और मृत्यु उसकी दो विभूतियाँ है। दोनो को उसके कृपा-प्रमाद के तौर पर स्वीकार करना चाहिए । इस प्रसाद का हमारी ओर से दान करने से काम नहीं चलेगा। चाहे हम किसी को जन्म दें या मरण, जीवन-देवता तो असन्तुष्ट ही होता है। जीवन-रहस्य परखने की साधना के लिए मनुष्य जन्म ग्रहण करता है, इसी साधना के लिये जान-बूझकर मृत्यु को न्योता देने मे प्राध्यात्मिक प्रगति नही है ।
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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