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________________ 4. महावीर की निर्वाण-भूमि हिन्दुस्तान के बबई नगर तो प्रब देहात होना पोरकर नगगे। तो नामोनिया भी नहे। प्रत जोदेशात पर प्रान पायागेकी कोई नल्पना भी नहीं पी जा मानी। प्राचीन काल का या कोई प्रयोग दिखायी नहीं देना। मिर्फ महावीर में महाशियोण सामग्ण उग म्पन गे चिपका हुमा है जानिये भवानीष्टि वा हजार गाल पतीन में जामती है और महावीर क्षीण किन्नु भजन्बी नाया शान्न निन गे शिलो मो उपदेश दे रही है गंगा निप्र 17 माग ग्राम पाना समार ना परम रहस्य. जीवना मार मोक्ष पाया र मुगार में जव पर रहा था. नर पर गुनो में लिये गह कोन कोन बैटगे अपना गगेर अब गिग्ने वाला है या जागर उग शरीरमा अनिम कार्य-प्रमान गम्भीर उपदेग-प्रत्यन्न मारना गाय करने में प्राधिगे मव क्षण काम में लेने वाले उम परम पिग्गी गागिरी गन गिगी गिगा होगा? और उनके उपदेन का प्राय गिाने नोग ठीक ममने होगे अन्टि गे लिए भी अगोनर सूक्ष्म जीवों में लार पपना के लिए भी प्रगोगर पनत गोटि ब्रह्माट तफ मागे वन्नु जाति या गायाण गाने गात उम परिमा मूनि का हादं विमने जमा पिया हागा ? मनुष्य पापा । उमसी इष्टि पा. देशी होनी है, माचिन होनी है। इसलिये गे गपूर्ण मान नही हो पाता। हर एक मनुष्य ा मत्य मागी मन्य रोना । मनिए गर के अनुभवी पालोचना करने का उमं सोई अधिपार नहीं । परन् प्रधम हो जाता है । यो कहकर स्वभाव मे उत्तम मानर बुद्धि को नमना मिग्राने याने उग परमगुण को उम दिन किमने वन्दन किया रोगा ? एन मियो में जीवन के बाद भी मानव जानि के निग-हो, ममम्न मानर जानि के लिये यह उपदेश माम ग्रागा म तरह का पयान उम पुण्यपुम्प के मन में या नभी पाया होगा? मैं मानता है कि स्याद्वाद ने मानव-शुद्धि की मागिता को पहनान फर शास्त्रशुद्ध ढंग मे उमे मानव-त्रुटि के मामने रख दिया है। ग्राम दृष्टि में देखने पर कोई चीज एक तरह की मालूम होती है। दूसरी दृष्टि में देग्रने पर वह दूमरी तरह को मालूम होती है। जैसे जन्मान्ध हाथी को गांचते है, चमी दम दुनिया में हमारी स्थिति है । क्या कोई कह माता है कि यह वर्णम यथार्थ नहीं है ' जिमे यह मालूम दृया कि हमारी यही स्थिति है, वही इम जगत मे यथार्थ ज्ञानी है। जो यह पहचानता है कि मनुष्य का ज्ञान एप-पक्षी
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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