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________________ महावीर का जीवन सदेश प्रवाह में दूर तक वहने की शक्ति हो तो जहाँ तक वह पहुंचे वहाँ तक वगैर किसी पक्षपात के तमाम मानवो को अपनाना चाहिये । 182 और, जहाँ पक्षपात करना पड़े वहां अपनो को प्रथम याद करने के बजाय जिनके प्रति मेरे या मेरे लोगो के हाथो अन्याय हुम्रा हो, जो ज्यादा असहाय हो, दवे हुये या निराश हो, उनके प्रति दान का पक्षपात होना चाहिये । इस तरह की भावना जब उत्पन्न होगी, स्वीकृत होगी और सहज होगी तभी हिंसा धर्म का सस्थापन कायम होगा। तभी मानव जाति के वीच चलता सघर्ष और विग्रह शान्त होगा । उच्च-नीच भाव गायव होगा, प्रेम की भावना बढेगी और फैलेगी। और, विराट मानव के साथ मानवो के मे हृदय वसने वाले भगवान् का साक्षात्कार होगा ।
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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