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________________ 177 महामानव का माक्षात्कार एक समाज के इतिहास लिख रखे और राष्ट्रीयता या मानवता तक उनकी चर्चा की। अपने आपको पहचानने के लिये उसने अपने शरीर की जांच की और शरीररचना - शास्त्र, आरोग्य-शास्त्र, आहार - शास्त्र वैद्यक इत्यादि शास्त्र रचे । उसके बाद उसको लगा कि अब हमे अपने मन को पहचानना चाहिये । सृष्टि की तमाम प्रद्भुत चीजो मे अगर कोई सब से प्रद्भुत तत्त्व है तो वह मनुष्य का मन है । मनुष्य जैसा शोधक कारीगर मन का पीछा करे तो उसमे से क्या-क्या ढूंढ नही निकालेगा ? योगविद्या और प्रयोगविद्या का विकाम करके उसने मन की गहराई जाँची । ( उसकी शक्तियाँ खोज निकाली, उसकी विकृतियो के इलाज ढूंढे ) और श्राखिर जिन्दा रहते हुये भी अपने मन को मार कर उसके स्थान पर आत्मा और आत्मशक्ति को स्थापित करने की राज-विद्या का भी उसने विकास किया । मनुष्य ने देखा कि अपने मन का वास शरीर मे होने पर भी उसका व्यक्तित्व उसमे नही समाना । 'सारा मानव समाज ही मानव जाति के लिए प्राथमिक इकाई (Unit) है । इसलिये उसने मानस शास्त्र को मामाजिक रूप दिया, सपत्ति-शास्त्र विकसित किया, समाजशास्त्र जैसे एक नये ही शास्त्र का निर्माण किया । इतिहास मे जो न मिल सका सो नृवश शास्त्र ( anthropology) के जरिये जान लिया और ग्राखिर श्रव मनुष्य सामाजिक-अध्यात्म तक पहुचा है। इस सामाजिक-अध्यात्म मे से नयी तरह का योग शास्न निर्माण होता है, विश्वात्मैक्य का नया दर्शन तैयार होता है, विश्व संगीत और विराट कला कायम होती है, इतना ही नही, बल्कि हम देखते हैं कि उसमे से नई राजनीति का भी जन्म हो रहा है। इसके वारे मे थोडे प्राथमिक विचार यहाँ प्रकट करना चाहता हूँ । मनुष्य ने अपनी जीवनानुभूति के विकास के मुताबिक पहले गोत्रो की ( clans and tribes ) की कल्पना की । बाद मे राष्ट्र और साम्राज्य कायम किये । विशाल समाज की शास्त्रीय रचना करने के लिये उसने वर्ण व्यवस्था श्रौर श्राश्रम व्यवस्था की कल्पना की । इतना ही नही बल्कि उनका श्रमल भी कर देखा । हुनर उद्योग-धन्धो का विकास करते-करते उसने ट्रेड गील्डस ( trade-gurlds ) ग्राजमाये और फिलहाल राष्ट्रसघो की स्थापना करके मानवता का साक्षात्कार करने के लिये वह प्रयत्नशील है ।
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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