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________________ क्षमपान का दिन 161 होती। फन इतना ही होना है कि दोनो के बीच अगर कुछ कटुता मा गई हो तो उसे छोडने का थोडा-सा मौका मिलता है और प्रौपचारिक क्षमा करने के वाद उस साल मे हुए झगडे का जिक्र आदमी नहीं कर सकता। अच्छा रास्ता तो यह है कि दोनो व्यक्ति वैठ कर शान्ति से क्षमावृत्ति से वाते करें। अपने जो दोष ध्यान मे आ जाये, उनका नाम लेकर क्षमा मांगे और एक दूसरे के सद्भाव की याचना करे। वह दिन सचमुच एक नया प्रारम्भ करने का दिन है। महाराष्ट्र मे मकर सक्रान्ति के दिन लोग स्नेह और मिठास के प्रतीक तिल और गुड एक दूसरे को देकर मद्भाव की याचना करते है। उसमे क्षमापन का हिस्सा नही है । ऐसा माना गया है कि जहाँ सद्भाव पाया वहाँ मन मे कटता रह नहीं सकती। बहुत-सी बाते तो मनुष्य भूल ही जाता है। और चन्द वाते मन मे रही भी, तो वह चुमती नही । द्वप का कचरा दूर करने के लिये बुहारी लेकर उसके पीछे पड़ने की जरूरत नहीं है । प्रेम पैदा हुपा तो द्वैप आप ही आप गायव हो जाता है। जैसे धूप निकलते कहरा। गुजरात मे, खासकर के जैनियो मे क्षमापन का सुन्दर रिवाज है। वे कहते हैं-मिय्या मे दुष्कृत स्यात् - मैने जो कुछ भी बुरा किया हो वह नही किया जैसा हो जाय । मायावादी वेदान्ती इस प्रार्थना का रहस्य जल्दी और अच्छी तरह से समझ सकेगे । जो लोग सारे जगत की हस्ती को मायारूप मानने के लिए तैयार हैं, वे क्सिी के भी दुष्कार्य को मायारूप समझकर मिथ्या मान कर उसे भूल जाने के लिये आसानी से तैयार हंगे। जो हो, अन्तर्मुख होकर अपने दोपो को देखने का स्वभाव हरएक को बढाना चाहिये । अभिमान छोडकर अपने दोप कबूल करने में मानसिक आरोग्य है और सामाजिक सुगन्धि है, यह पहचानना चाहिये । दूमर के दोपो को क्षमा करने की तत्तरता मन मे होनी चाहिये और समाज मे परस्पर सद्भाव वढाने का अखण्ड प्रयत्न चलना चाहिये। मनुष्य-मनुष्य के वीच ऐसा वायुमण्डल पैदा करने की आवश्यकता स्पष्ट है। लेकिन भक्त लोग भगवान् के पाम से भी नित्य क्षमा मांगते हैं। ऐसे अपराध-क्षमापन के स्तोत्र भी बनाये गये है, जिनमे अपने सारे दोपो की फेहरिम्न भी होती हे और भगवान् को उसकी उदारता, उसका वात्सल्य और उसके सामर्थ्य की याद भी दिलाई जाती है। अपने दोपो को यादकर के
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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