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________________ महावीर का जीवन संदेश युद्ध करते है | हम एक-दूसरे के पैर खीचकर एक-दूसरे को नीचे गिराते है । वृत्ति से तो दोनो एक से ही है । वहाँ समर्थों की शस्त्राधारी हिंसा चलती है, यहाँ समर्थो की प्रविश्वास, द्वेप, निद्रा और द्रोह - मूलक हिंसा । 142 अदालत मे जाने के वदले पच के द्वारा अन्याय दूर अन्याय करने वालो को अपना बनाकर उसकी शुद्धि का प्रयत्न प्रकार की ग्रहिंसक साधना का विकास विचारपूर्वक अभी तक किया है । कराना और - करना - इस हमने नही सरकारी अन्याय के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह करने के बजाय सत्याग्रह करने की हिंसक साधना हमारे जमाने मे गाँधीजी ने ही बताई है। राज्य के विरुद्ध किये जाने वाले पुराने 'जागा' (धरना) या ऐसे ही दूसरे विद्रोह मे हिंसा नही थी । शायद ऐसा कहा जा सकता है कि उसमे अहिंसक पद्धति के बीज थे । राष्ट्रो के बीच जो युद्ध लडे जाते है उनके बजाय चढाई करने वाले शत्रु का अहिंसक पद्धति से प्रतिकार कैसे किया जाय, यह सोचने या सुझाने का मौका गाँधीजी को भी नही मिला है । अमेरिका मे या अफ्रीका मे गोरे लोग काले लोगो पर जो जुल्म ढाते है, उन्हें दूर करने का अहिंसक मार्ग दिखाने की जिम्मेदारी अहिंसा के उपासको और आचार्यों की है । परन्तु ग्राज तो ये लोग शास्त्र-वचनो की व्याख्या करने मे और परम्परागत मार्ग से अपने तप या प्रतिष्ठा को बढाने मे ही मशगूल है । आज दुनिया मे बडी से बडी हिंसा शोपण की चल रही है। दूसरो की कठिन परिस्थितियो का लाभ उठाकर उनकी सेवाओ का दुरुपयोग करन और उन पर अनुचित अत्याचार करना अर्थात् उनके जीवन का शोषण करना बहुत बडी हिंसा है। इस तरह की हिंसा परिवारो मे भी चलती है । जमीदार और काश्तकार खेत मे काम करने वाले मजदूरो के मालिक और खेतीहर मजदूर, कारखानेदार और कारखाने के मजदूर उच्च वर्गों के लोग और श्रमजीवी लोग इन सब के सम्बन्धो मे शोषण की, दबाव की और जुल्मो की हिंसा सतत चला ही करती है। साहूकार मनमाना व्याज लेकर कर्जदार को चूसता है यह भी हिंसा ही है ।
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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