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________________ स्याद्वाद की समन्वय शक्ति 135 श्री विनोवाजी के कहने मे मैंने इसी विषय पर सर्वोदय सम्मेलन मे एक व्याख्यान भी दिया श्रौर श्री विनोवा ने अपने व्याख्यान मे उस की पुष्टि की। बुद्ध गया एशिया के लोगो को एकन करने वाला एक पवित्र स्थान है । मैंने तुरन्त देखा कि बौद्ध जीवन-साधना, जैन जीवन - साधना और वेदान्त को जीवन-साधना तीनो का उत्तम समन्वय हो सकता है। श्रोर, ऐसा समन्वय ही भक्ति के वायु मंडल में दुनिया का उद्धार कर सकता है । स्याद्वाद अथवा समन्वय ही अहिंसा का सर्व करयाणकारी साधन श्रथवा जार है । (हिंसा के समर्थ शस्त्र को शस्त्र न कह कर प्रोजार ही कहना चाहिये 1) समन्वय के इम सर्व-समर्थ प्रोजार या साधन की मदद से सारे विश्व को हम एक परिवार बना सकते हैं । 'यन भवति विश्व एकनीडम् ।' जैन मुनियो की परम्परा सामान्य नही है । उन मे जितनी रूढिनिष्ठा है, उतनी ही तत्त्व-निष्ठा भी है। श्रोर, तत्त्व-निष्ठा की विजय रुढि पर जब होगी, तभी जीवन मफन होता है । रुढि - निष्ठा, मरण की दीक्षा है । तत्त्व-निष्ठा जीवन और प्रगति को दीक्षा है । अव युग-धर्म कहता है कि तत्त्व-निष्ठा को समन्वय की दृष्टि से जीवन की ओर देखन चाहिये । मैं मानता हूँ कि युग-धर्म समन्वय को ही सफल बनायेगा ।
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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