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________________ 112 करतूते हम नही जानते, सो बात नही । हम अपने हम दुनिया से अलग थोडे ही है, तो भी हम कल्याण की ओर प्रस्थान अवश्य करेगा । महावीर का जीवन संदेश दोप भी कहाँ नही जानते ? विश्वास करते है कि मनुष्य आज लोग दुनियो के सामने मानवी प्रेम का, विश्व कुटुम्ब का प्रदर्श रखते सकोच करते है । सिर्फ Peaceful co-cxistence प्रहिंसक सह-जीवन या सहचार की बाते करके ही सतोप मानते है । जब कि भगवान् महावीर ने प्राणी मात्र के प्रति अहिसा का सब प्राणियो के एक परिवार होने का सदेश दुनिया के सामने रखा और विश्वास किया कि इसका स्वीकार भी मनुष्य जानि अवश्य करेगी । इसीलिये मै भगवान् महावीर को प्रास्तिक - शिरोमणि कहता हूँ । लेकिन आज मैं यह पुरानी बात विस्तार के साथ दोहराना नही चाहता । आज मुझे एक कदम आगे बढकर एक नये समन्वय की बात करनी है - Synthesis ौर harmony की बात करनी है । हम सनातनी लोग उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र, और भगवद् गीता को 'प्रस्थानत्रयी' कहते है । और, तीनं मे जो कोई पुरुष एकवाक्यता या समन्वय सिद्ध कर बतावे उसको 'आचार्य' कहते हैं । यह पुरानी बात हो गयी। अनेक श्राचार्यों ने अपने-अपने ढंग से 'प्रस्थानत्रयी' की एकवाक्यता कर दिखाई है और हमारे जमाने मे कई विद्वानो ने इन सब आचार्यों के बीच भी सामजस्य स्थापित कर दिखाया है। शकराचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, निम्बार्क आदि आचार्य जो कहते है वह एक-दूसरे का मारक नही है, किन्तु समर्थक है, ऐसी भूमिका पर हम पहुँचे है । और, इसी कारण भारतीय दर्शनशास्त्र एक नई समृद्धि पा सका है । अब हमे सस्कृति समन्वय की दृष्टि बढाकर अपने देश के लिए तीन धाराओ का समन्वय करना आवश्यक हो गया है। बौद्ध दर्शन, जैन- दर्शन, और वेदान्त दर्शन आपस मे चाहे जितना विवाद करें, सस्कृति की दृष्टि से इन तीनो मे सुन्दर समन्वय देखना आज का युग - कार्य है । बुद्ध भगवान् को हम इस युग के अवतार मानते है । बुद्ध भगवान् ने अपने जमाने के दार्शनिक झगडे को देखकर लोगो से कहा कि भले आदमी, इस आत्मा-परमात्मा की झझट मे मत फँसो । आत्मा-परमात्मा अगर हैं तो अपने स्थान पर सुरक्षित
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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