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________________ 84 महावीर का जीवन संदेश का सर्पसत्र-इस सारे वातावरण का जिन लोगो को स्मरण था, उन्होने सम्पूर्ण जीवन-दृष्टि मे परिवर्तन करने का निश्चय किया। यह विचार धीरे-धीरे परिपक्व और दृढ होता गया, छह सौ वर्ष तक यह प्रक्रिया चलती रही और उसमे से आर्य-परम्परा के दो पन्थो का जन्म हुआ। इन पथो को हम बौद्ध धर्म और जैन धर्म के नाम से पहचानते है। नहि वेरेण वेराणि सम्मन्तीध कुदाचन । अंवरेण च सम्मति एस धम्मो सनन्तनों ॥ इस प्रकार कहकर बुद्ध भगवान् ने अवैर का सन्देश दिया । 'दुख सेते पराजितो'-प्रजा का यह अनुभव होने से उसने इस सन्देश को अपना लिया । वुद्ध भगवान् ने मासाहार का निपेध भले ही न किया हो, किन्तु यह उन्होने स्पष्ट कहा है कि जव मानव-जाति यज्ञ के नाम पर पशुहत्या नही करती थी उस समय मनुप्यो मे रोग नही-जैसे ही थे । पशुहत्या के फलस्वरूप ही मानव-जाति को अनेक रोग लग गये है। और, जातृपुत्र वर्धमान महावीर ने तो अहिंसा को ही परम धर्म कहकर मानव-जीवन के सम्पूर्ण आधार को ही बदल डाला । वैदिक काल में अवैर, अहिंसा और गोरक्षा की कल्पना थी ही नही ऐसा नही; परन्तु धर्म का पूर्ण साक्षात्कार भी तो अनुभव से ही होता है । बुद्ध और महावीर के समय मे ही ऋषि-दृष्ट अहिंसा का प्रेम-धर्म लोक-दृष्ट हुआ। यह तो नही कहा जा सकता कि उनके समय के बाद भारत मे यज्ञ हुए ही नहीं, परन्तु राष्ट्र-धर्म के हृदय मे यज्ञ अप्रतिष्ठित वन चुके थे। वे प्राचीन संस्कृति की |ज की तरह सुने गये और अनादर के मौन मे विलीन हो गये । जहाँ-तहाँ जन-हृदय पूछने लगा कि वृक्षो का सहार करने से, पशुओ की हत्या करने से और रक्त-मास का कीचड फैलाने से यदि स्वर्ग मे जाया जाता हो, तो फिर नरक मे जाने का मार्ग कौनसा है ? जब अनुकूल और प्रतिकूल तटो पर वसने वाले किसानो मे बीच की नदी के पानी के लिए युद्ध होने का अवसर खडा हो गया, तव बुद्ध भगवान ने दोनो के नेताओं को इकट्ठा करके पूछा 'पानी कीमती हे या भाइयो का खून ?' 'णनी के लिए भाइयो का खून बहाना कहाँ की बुद्धिमानी हे ?'
SR No.010411
Book TitleMahavira ka Jivan Sandesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajasthan Prakruti Bharati Sansthan Jaipur
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1982
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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