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________________ महावीर का अन्तरतल [ ६५ बलवान था । फिर भी मैंने कहा- भाईजी ! माता पिता के वियोग का शोक होना स्वाभाविक है फिर भी उनने हमें असमर्थ बनाकर नहीं छोड़ा है । पाल पोसकर बड़ा किया है और इतना बड़ा किया है कि कर्तव्य का बोझ हम अच्छी तरह से अटा सर्के । आप अपना बोझ उठा ही रहे हैं, सझे भी अपना बोझ अठाने दीजिये । घर गृहस्थी के काम में ऐसी झंझट नहीं हैं कि आप उन्हें सहन न कर सकें | भाईजी ने कहा- तुम ठीक कहते हो भैया ! मैं घर गृहस्थी की सारी झट सहन कर सकता हूं। पर तुम्हारे चले जानेपर यशोदा देवी के कक्ष से जो आहें निकलेगी उनको सहन करने की शक्ति मुझमें नहीं है। माताजी होतीं तो वे सब सहन कर जाती पर आज वे भी नहीं हैं । ऐसी अवस्था में मैं तुमसे प्रार्थना करता हूं कि जैसे माताजी के अनुरोध से तुम इतने दिन रुके, कमसे कम एक वर्ष मेरे लिये भी रुको । मैं चुप रहा । भाईजी ने इसे मेरी स्वीकारता समझी, इसलिये वे प्रसन्नता प्रगट करते हुए बोले- बस ! एक वर्ष, मेरे लिये केवल एक वर्ष । मैंने मन ही मन कहा- आपके लिये नहीं, आपके नामपर यशोदा देवी के लिये, यह केवल एक वर्ष नहीं है किन्तु एक वर्ष और है ! १४ - गृह तपस्या , २६ - चन्नी ६४३० इतिहास संवत् भाई साहब ने जो मुझसे एक वर्ष रुकने का अनुरोध किया उसमें उनकी इच्छा से भी अधिक देवी को इच्छा थी और इस घटना में देवी का ही मुख्य हाथ था, यह सब जानते : •
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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