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________________ महावीर का अन्तस्तल [ ३२ बारे में तुम्हारा कोई कर्तव्य नहीं है ? मैं- मैं इसे अस्वीकार नहीं करता माँ, पर आशा करता हूं तुम मुझे जगत्कल्याण के लिये समर्पित करने की उदारता दिखाओगी? साथ ही मुझे यह भी विश्वास है कि मेरे न रहने पर भी भाई नन्दीवर्धन तुम्हारी सेवा में किसी तरह की कोई कमी न रखेंगे । माताजी जरा उत्तेजित सी होगई और बोलीं- हां! हां ! कमी क्या होगी ? रोटी मिल ही जायगी, पेट भर ही जायगा । पर क्यों वर्धमान, क्या जीवन का सारा आनन्द पेट में ही रहता है ? मन से कोई सम्बन्ध नहीं ? मैं ऐसा तो मैं कैसे कह सकता है ? मन न भरे तां पेट भरने से क्या होगा ? मां - तब क्या तुम सोचते हो कि जिसका जवान बेटा बिछुड़ जायगा उस मां का मन भरेगा ? अरे ! मन भरने की बात जाने दो, पर सुहाग तो नारी का सबसे बड़ा धन है पर जिसकी पुत्रवधू विधवा न होनेपर भी विधवा की तरह जीवन वितायगी वह किस मुँह से अपने सुहाग का अनुभव करेगी ? यशोदा मुँह से कुछ कहे या न कहे पर सामने आते ही उसकी आंखें मुझसे पूछेंगी क्यों मां. इसी दिन के लिये तुमने मुझे अपनी पुत्रवधू ? बोल तो बेटा, उस समय में असे क्या उत्तर दूंगी ? ४. बनाया था और कैसे उसे मुंह दिखा सकूँगी ? मैं चुप रहा । मां ने फिर अत्यन्त करुण स्वर में कहा- तेरे जाने पर सारा जग उसकी हँसी उड़ाया ? असके सुहाग चिन्ह उसे पूछेंगे- अब हमारा बोझ किसलिये ?
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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