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________________ महाग का नाताल [ 5 मनकी बात किसीको मालूम नहीं है. मालूम होने पर न जाना होगा, कुडगाम मच जायगा । मेरे रहन सहन नर्गक गुन्नी कुछ शंकित तो है पर उन्हें क्या मान्दन कि मेरे मन में कोनीयमान मंची है । यो मुझे किसी बात का कट नहीं है. मोबार का मुदा है, भाई नान्दवर्धन मुझे दाहिना हाथ स. दाने.. पानी को न प्राणों के समान प्यार करती है, और वो जो नुदाना- नग. कर उल्लास से ऐसी कृदने लगती है कि में फैन भी विचारों में मग्न होऊ मेरा ध्यान खचही लेती है. ना करे गोद में ना ही पड़ता है, माधी घड़ीको मेरी लागे गम्भीरता को या. आता देती हैं। ऐसा . बना बनाया यह सोने का नजारा किसका जी चाहेगा ? मैं छोड़ने की बात कनो लोग अगा। डरने लगे। पर इस तरफ उनका ध्यान ही नी जाना किया सब चिरस्थायो नहीं है और न सत्र के भाग्य में यह हो भी तो नहीं सकता, सभी राजा होजाय ना गम किनार हो, सभी मालिक हो जाये तो दान कानहो ? सरि भेरे समान परिस्थिति नहीं भिन्टनकनीनर सामाजिक स्थिति से जगत सुखी कसे होलकता : मिनि कीना चाहिये कि कोई किसी के ऊरर लयार न. समाजात तप त्याग की महत्ता हो. पर कुलको धनको का पा अधिकार की महत्ता नए हो । लांग वाले गुणिमा की 37. कारियों की सेवा पूजा प्रतिष्ठा मोनान याद कर. में विवशता को हीनता न होना चाहिए । जर तर मय जी होता तर तक जगत मुखी नही होरपना का . मुझे जगत को गताना र.. असपर करना और मो. अपने जीवन का बलिदान करना :
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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