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________________ महावीर का अन्तस्तल ...ivvvvo... अनेकान्त का यह आधुनिक और व्यवहारिक रूप है । यो दुसरे धर्मतीर्थों के राम आदि देवों को जैतधर्म ने अपनाया ही है, उन्हें केवली आदि मानकर सांस्कृतिक समन्वय का पूरा प्रयत्न किया है। सत्यसमाज उसी नीति का व्यापक और व्यवस्थित रूप है । ऐसी हालत में यदि अधिकांश जैन लोग सत्यसमाज को अपनाये तो वे सच्चे और आधुनिक जैनधर्म को, या जैन धर्म के नये अवतार को अपनायँगे। मनुष्य जिस वातावरण में शैशव से पलता है वह उसी. का पुजारी होजाता है, सो पूजा करने में, कृतज्ञता प्रगट करने में वुराई नहीं है; परन्तु जैसे बाप दादों की पूजा करते हुए भी धन के लिये बाप दादों से भिन्न लाधन अपनाता है, जिसमें लाभ होता है वही करता है, उसी प्रकार पुराने र्थिकरों और तीर्थों की पूजा करते हुए भी धर्म के लिये आधुनिक तीर्थ को अपनाना चाहिये । सत्यसमाज आधुनिक धर्म तीर्थ है, इसमें इस युग की सभी समस्याओं का समाधान है । महावीर स्वामी यदि आज आते तो वे भी इसीसे मिलते जुलते सन्देश देते। और झुनका दृष्टिकोण यही होता। . हरएक 'धर्मसंस्था दुनिया को सुखी बनाने के लिये आती है। भीतर बाहर से हरतरह सुखी बनाने का कार्यक्रम बनाती है । जैनधर्म के अनुसार जव यहां भोगभूमि का युग था अर्थात समाज की कोई समस्या नहीं थी तब यहां कोई धर्म नहीं था। जब समस्याएं पैदा हुई, दुःख बढ़ा, तब कुलकर तीर्थकर आदि आये । इससे मालूम होता है कि जीवन की तथा समाज का समस्याओं का हल करना ही हर एक धर्म का कार्य है और यही उसकी कसौटी है। जैनधर्म ने अपने युग में यही किया और काफी सफलता मिली । अव युग आगे वदला है, आगे बढ़ा है, जटिल और कुटिल हुआ है, उसके लिये युग के
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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