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________________ महावीर का अन्तस्तल पर अगर इतनी सफलता न मिलती तो ? तो क्या अपने ध्येय पर अटल रहता ? मैं अन्त समय में बिलकुल अल भाव से कह सकता हूं कि तो भी अटल रहता । मैंने जो किया झुसका भीतरी आनन्द इतना था, कि बाहरी सफलता निष्फ लता की पर्वाह ही नहीं थी । ३४८ यही तो मेरा मोक्ष था । मैंने वह पाया और दूसरों को दिया । संसार के प्राणियो । मैंने तुम सब का भला चाहा है और सीके लिये दिनरात प्रयत्न किया है । द्रव्य क्षेत्र काल भाव के अनुसार सब जीध स्वपर कल्याण के कार्य में लगे, लगे रहें यही मेरी शुभाकांक्षा है, यही मेरी विश्वमंत्री है, यही मेरी वीतरागता है । जगत् में शान्ति हो ! चित् शान्ति हो ! अच्छा, अब विदा । वर्धमान - महावार
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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