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________________ ww महावीर का अन्तस्तल [ ३४१ भूत जीवों की हिंसा न करूंगा । गौतम ने कहा- आयुष्मन्. इस निरर्थक शब्दाडंवर का कोई अर्थ नहीं। जो सभूत है वहीं त्रस कहलाता है, जो त्र रूप नहीं हुआ है उसे त्रस नहीं कहा जाता है । पर उदक अपना हठ छोड़ने को तैयार न हुआ । इतने में दूसरे पार्श्वपत्य स्थिविर आगये । उनले गौतम ने पूछाआर्यों, अगर कोई मनुष्य ऐसी प्रतिक्षा लेले कि मैं अन गार साधुओं को नहीं मारूंगा और फिर वह ऐसे किसी व्यक्ति को मारता है जो कभी अनगार साधु था पर आज साधुता छोड़ चुका है। तो क्या असकी प्रतिज्ञाभंग होगी ? स्थविर - नहीं, इनसे प्रतिज्ञाभंग न होगी, जब वह मनुष्य अनगार है ही नहीं, तब उसमें प्रतिज्ञा भंग का कारण क्या रहा । इस प्रकार अनेक उदाहरण देकर गौतम ने समझाया । पर उद्दक न समझा और चलने लगा । तब गौतम ने उसे रोका और फिर समझाया तव वह समझा और पार्श्वनाथजी का धर्म छोड़कर मेरे धर्म को अंगीकार किया । ३ सत्येशा ६४६ इ. सं. नालन्दा में चौंतीसवां चातुर्मास बिताकर विदेह के वाणिज्यग्राम आया। यहां सुदर्शन सेठ को उसके पूर्वभव की कथा सुनाकर प्रभावित किया जिससे वह दीक्षित होगया । पैंतीसवां चातुर्मास वैशाली में बिताया । इसके बाद कौशल की ओर विहार कर फिर विदेह लौटा और छत्तीसवां चातुर्मास मिथिला में बिताया । वहां से विहार कर राजगृह के गुणशिल चैत्य में ठहरा हूं ।
SR No.010410
Book TitleMahavira ka Antsthal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyabhakta Swami
PublisherSatyashram Vardha
Publication Year1943
Total Pages387
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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